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सोमवार, 14 दिसंबर 2015

149....साईं ने सरल मन से कहा, "मेरा नहीं? ले जाओ!"

सादर अभिवादन
एक बार फिर
उपस्थिति मेरी
क्या करूँ
निभाना तो पड़ेगा
आधा अंग जो हूँ

आज की पसंदीदा रचनाओं की एक झलक..











की जाना मैं कौन में
अब गाँव वालों को बड़ी ग्लानि हुई. 
बच्चा किसी और का, 
और हम ने यूँ ही साईं पर झूठा इलज़ाम लगाया! 
बच्चे के माता पिता और गाँव वाले मिल कर साईं  पहुंचे, 
उन्हें सारी बात बताई, और बच्चा ले जाने की बात कही. 
साईं ने सरल मन से कहा, "मेरा नहीं? ले जाओ!" 


मेरे गीत ! में
कैसे कैसे लोग यहाँ पर 
हिंदी के मार्तंड कहाए !
कुर्सी पायी है मस्के से 
सुरा सुंदरी,भोग लगाए !
ऐसे राजा इंद्र  देख कर , हंसी उड़ायें मेरे गीत !
हिंदी के आराध्य बने हैं,कैसे कैसे लोभी गीत !


आहुति में
कितना कुछ लिखा....पढ़ा है...
मैंने इस साल में.......
कभी तुम्हारी परछाई बनी रही,
कभी देर तक बैठ कर तुमसे बाते की,
कभी-कभी तो...
मैं तुम्हारी जिंदगी में...


जिन्दगी में
कि
सुलग रही हैं आजकल
खामोशियाँ मेरी
और
जलने के निशान ढूँढ रहे हैं
जिस्म मेरा


सपने में...
जिंदगी के
इस सफर में 
भीड़ का हिस्सा नहीं हूँ 
गीत हूँ मै, 
इस सदी का
व्यंग का किस्सा नहीं हूँ.



और आज की अंतिम झलक
मेरी संगिनी के ब्लाग से


नहीं जानती क्यों
अचानक सरसराती धूल के साथ
हमारे बीच
भर जाती है आंधियां
और हम शब्दहीन घास से
बस नम खड़े रह जाते हैं

आदेश की प्रतीक्षा
साग्रह..सादर
दिग्विजय











5 टिप्‍पणियां:

  1. अति सुंदर...
    पुनः आप की अगली हलचल की प्रतीक्षा रहेगी...
    आभार।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति
    आभार!

    जवाब देंहटाएं
  3. Sirf ek baat - Sindh =, Punjab aadi pradeshon mein, "Sai" kidi bhi fakir ke liye upyukt kiya jaane vaala shabd tha. Meri mansha ise Shirdi ke Sai baba ke saath joDne ki nahi thi. Maine ye kahaani shayad Sindhi Lok kathaaon mein suni thi. Us bhasha mein "Sai" aam bol chaal ka shabd hai.

    Bhool sudhaar. Sindh se baahar ke log ye nahi jaante honge!

    जवाब देंहटाएं

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