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रविवार, 13 दिसंबर 2015

148...आज एक कवि मर गया आपका, हमारा, पूरी दुनिया का

जय मां हाटेशवरी...



 एक कवि मर गया
आपका, हमारा, पूरी दुनिया का
लेकिन मोहनजोदड़ों के  तालाब की सीढ़ी पर  पड़ी उस औरत
की लाश के पास आज भी बसती है उसकी कविता
कुएं में कूद कर चिता में जलती उन औरतों
की समाधि में आज भी बसती है उसकी कविता
सती होने वाली उन महारानियों   की
मजबूरियों  में आज भी बसती है उसकी कविता
बड़ी होकर चूल्हें में लगा दी जाने वाली
लड़कियों की सिसकियों में आज भी बसती है उसकी कविता
आसमान में धान बोने वाले किसान के
दिल में सूलगते आभाव की आग में
आज भी बसती है उसकी कविता
आज एक कवि मर गया
आपका, हमारा, पूरी दुनिया का
रमाशंकर यादव 'विद्रोही'  के जाने से...
हमने एक महान कवि  खो दिया है...
इस महान कवि  को पांच लिंकों का आनंद परिवार की ओर से श्रधांजली के रूप में उन्ही की रचित  ये छोटी सी कविता...

एक औरत
जो माँ हो सकती है
बहन हो सकती है
बेटी हो सकती है
बीवी हो सकती है

मैं कहता हूँ हट जाओ मेरे सामने से
मेरा ख़ून जल रहा है,
मेरा कलेजा कलकला रहा है,
मेरी देह सुलग रही है,
मेरी माँ को, मेरी बीवी को,
मेरी बहन को, मेरी बेटी को मारा गया है जलाया गया है
उनकी आत्माएँ आर्तनाद कर रही हैं आसमान में

मैं इस औरत की जली हुई लाश पर सिर पटककर
जान दे देता अगर मेरी एक बेटी न होती तो!
और बेटी है कि कहती है-
पापा तुम बेवज़ह ही हम लड़कियों के बारे में इतने भावुक होते हो
"हम लड़कियाँ तो लकड़ियाँ होती हैं जो बड़ी होने पर
चूल्हे में लगा दी जाती हैं"

और ये इंसान की बिखरी हुई हड्डियाँ
रोमन के गुलामों की भी हो सकती हैं और
बंगाल के जुलाहों की भी या फ़िर
वियतनामी, फ़िलिस्तीनी, बच्चों की
साम्राज्य आख़िर साम्राज्य होता है
चाहे रोमन साम्राज्य हो, ब्रिटिश साम्राज्य हो
या अत्याधुनिक अमरीकी साम्राज्य
जिसका यही काम होता है कि
पहाड़ों पर पठारों पर नदी किनारे
सागर तीरे इंसानों की हड्डियाँ बिखेरना

जो इतिहास को सिर्फ़ तीन वाक्यों में
पूरा करने का दावा पेश करता है कि
हमने धरती में शरारे भर दिए
हमने धरती में शोले भड़का दिए
हमने धरती पर इंसानों की हड्डियाँ बिखेर दीं!!

लेकिन,
मैं इस इंसानों का वंशज इस बात की
प्रतिज्ञाओं के साथ जीता हूँ कि
जाओ और कह दो सीरिया के गुलामों से
हम सारे गुलामों को इकट्ठा करेंगे
और एक दिन रोम आएँगे ज़रूर

लेकिन,
अब हम कहीं नहीं जाएँगे क्यूँकि
ठीक इसी तरह जब मैं कविता आपको सुना रहा हूँ
रात दिन अमरीकी मज़दूर
महान साम्राज्य के लिए कब्र खोद रहा है
और भारतीय मज़दूर उसके पालतू चूहों के
बिलों में पानी भर रहा है.
एशिया से अफ़्रीका तक जो घृणा की आग लगी है
वो आग बुझ नहीं सकती दोस्त
क्योंकि वो आग
वो आग एक औरत की जली हुई लाश की आग है
वो आग इंसानों की बिखरी हुई हड्डियों की आग है.
अब देखिये मेरे द्वारा चुने 5 लिंक...
 

कविता - बंगालन
मैं ब्याह करना चाहता था उससे,
मैंने दिन तय किया
उसे ले जाने का,
तारीख पर पहुँचा तो
जनाज उठ रहा था उसका,
एक खत छोड़ा था मेरे नाम,
तुम्हारी बंगालन
तुम्हारे लायक नही रही।
दिसंबर की धूप
जम जाते हैं वक्त के साये भी
बेहिस हो जाती है हर शय
हरसू गूँजती है
ठंडी हवा की साँय साँय ....
ऐसे में तुम याद आती हो
बारहा .......
आ जाओ न तुम
लेकर अपने आगोश में
अधरों से छूकर
भर दो  उष्णीयता से
रोम रोम खिल जाए
पीले सरसो के फूल की तरह

१९५. मेरा शहर
हर कोई लिए घूमता है
चाकू-छुरियां, तमंचे,
छोटी-सी बात पर
चल जाती हैं गोलियां.

पूरा हो जाता है कभी भी
किसी का भी समय,
पार्किंग को लेकर,
पैसों को लेकर,
जाति,भाषा,धर्म -
किसी भी मुद्दे को लेकर.

पौराणिक कथाओं के पात्र
वाल्मीकि रामायण के अनुसार हनुमान संस्कृत और प्राकृत भाषाओँ के ज्ञाता थे.हनुमान से पहले ही वार्तालाप में राम जान लेते हैं कि हनुमान चारों वेदों का ज्ञाता
है.अशोक वाटिका में सीता से भेंट करे समय हनुमान सोचते हैं कि मैं कौन सी भाषा में बात करूं.......
यदि वाचं प्रदास्यामि हिजतिरिव संस्कृताम्
रावणं मन्यमानां तों सीता भीता भविष्यति |
क्या भाषाओँ पर ऐसा अधिकार किसी कपि या बंदर का हो सकता है?इसलिए डॉ. कामिल बुल्के ने स्पष्ट बताया था कि हनुमान वास्तव में वानरगोत्रीय आदिवासी थे.

सोने-जागने की रस्‍म
आओ
फि‍र याद करें
उन मीठे लम्‍हों को
वो मादक गलबहि‍यां
वो होठों तले दबी-दबी मुस्‍कान
और बातों ही बातों में
गुजारी सारी रात



आज की हलचल यहीं तक
मिलते रहेंगे...
धन्यवाद।



8 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    हम लड़कियाँ हैं
    लकड़ियाँ नहीं
    जो झोंक दी जाए
    चूल्हे में...
    चिताओं पर
    ये भावना आ रही है
    पर उन औरतों का क्या उपाय
    जो इसको हवा देती रहती है
    पुरानी कहावत है
    औरते ही औरतों की दुश्मन होती है
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. आभार दिसंबर की धूप को शामिल करने के लिए ..... सभी खूबसूरत लिंक्स आज के ...

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति.विद्रोही जी की कविता पहली बार पढ़ी,बहुत अच्छी लगी.
    आभार ! मुझे भी शामिल करने के लिए.

    जवाब देंहटाएं
  4. शुभ प्रभात पुतर जी
    विनम्र श्रद्धांजलि विद्रोही जी को
    उम्दा लिंक्स चयन

    जवाब देंहटाएं
  5. Bahut sundr praatuti...naman vidrohi ji ko..meri rachna shamil karne ke liye aabhar aur dhnyawad

    जवाब देंहटाएं
  6. सच है की जिनकी सोच इस्लाम के बारे मैं गंदी है
    वो हमेशा अपनी गंदी सोच का ही प्रमाण देगा ।।
    इनका मुद्दा हमेशा से इस्लाम को नीचा दिखाना और
    ईस्लाम का नेगेटिव प्रमोशन करना ही है ।
    दुनिया जानती है की मुसलमानों के दिलो में
    पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) की क्या इज़्ज़त क्या रुतबा है
    जिनको खुदा ने सारी इंसानियत के लिए शांति और
    अमन का दूत बनाकर कर भेजा था उनकी शान में
    बार बार गुस्ताखी करना किस बहादुरी का नाम..
    पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल.) के खिलाफ़ की गई टिप्पणी देश का
    वातावरण बिगाड़ने का प्रयास है .जो गन्दी मानसिकता दर्शाती है
    अभिव्यक्ति की आज़ादी की बात करने वालो ।।
    आज़ादी का ये मतलब नही के किसी भी धर्म की आस्था
    को ठेंस पहुंचाई जाए आज़ादी तो यह है के सच को सच
    लिखा जाए बोला जाए।
    अगर दम है तो इजराइल के ज़ुल्मो की दास्ताँ बारे में बोलो ।।
    अगर दम है तो मज़लूमो की चीख पुकार के बारे में आवाज उठाओ।।
    अगर शर्म है तो सीरिया के हालात के बारे में बोलो ।।
    अगर इंसानियत है तो अमरीका के बर्बरता इराक़ पर बोलो ।।
    अगर दिल है तो फलस्तीन की माओं का दर्द सुनाओ ।।
    अगर दर्द है तो गुजरात आसाम के किस्से ब्यान करो ।।
    यह है अभिव्यक्ति की आज़ादी..
    किसी धर्म के बारे मैं गलत भाषा इस्तेमाल करना नहीं

    लेकिन यह जो दोहरी मानसिकता के लोग है वो एक तरफ़ा ही बोलते लिखते थे
    और बोलते लिखते रहेंगे लेकिन सच कभी नही बोलेंगे ।।

    जवाब देंहटाएं

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