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शनिवार, 3 अक्टूबर 2015

चिड़ियाँ



सभी को
यथायोग्य
प्रणामाशीष




कुंजन कैसे शुरू हो

अब धुँआ-धक्कीड़ शोर बहुत है,
बगुलों के ठिकानों पर,
मासूम मछलियाँ कैद हुई-
इन ऊँचे मकानों पर 
जल रहा हरेक कमल है,
चुप है कोयल बागों में,


जी करता तुमको लूँ चूम ।।
भाँति-भाँति के न्यारे-न्यारे ।
जीव-जंतु जहाँ रहते हैं सारे ।।
घर उनका हम सबको भाए ।
तभी तो चिडिय़ाघर कहलाए ।।


अक्ल चरने भी जाती है न

गधा सरताज है शातिर बेवकूफ़ी का
ऊँट तो लगता है कलाम किसी सूफी का
सिंह है भूख और आलस्य का सिरमौर
बाकी बहुत सारे हैं कितना बताएं और...

सारे पशु पक्षी हममें कुछ न कुछ भरते हैं
तब जाकर हम इंसान होने की बात करते हैं


कोयल की कूक तो क्या
कौवे की कर्कश ध्वनि को भी
कान तरसते हैं
मोर की अनायास ही याद आती है
जब जब बादल गरजते हैं
इंसान आज चाँद पर जा पहुँचा है
पर इनके लिये

थोड़ी सी कोशिश ही तो करनी है

थोड़ा - सा दाना और थोड़ा - सा पानी,
अगर इसे मिल पाएँ। 
तो इसकी प्रजाति,
इस धरती पर बढ़ जाएँ।।


फिर मिलेंगे
तब तक के लिए
आखरी सलाम


विभा रानी श्रीवास्तव

4 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात दीदी
    सुबह की नीन्द
    आज चिड़ियाओं के
    चहकने से खुली
    अच्छी प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  2. आदरणीय आंटी सुंदर लिंकों का चयन करके उत्तम हलचल लगाई है आपने....

    जवाब देंहटाएं

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