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रविवार, 4 अक्टूबर 2015

78वें अंक में...तलाश आम आदमी की

जय मां हाटेशवरी...

छोडो भी, ऐसा तो जीवन में होता है,
जो कभी मिलता है, वह कभी छिनता है।
लेकिन इससे डरकर
संध्या के सिंदूरी प्रकाश में
मंजरित तुलसी के
नीचे दीया
जलाना थोडे ही बंद किया जाता है।
भगवान बात सुनें, न सुनें,
तो भी मंदिर तो मंदिर ही है,
उसमें जो रोज शाम दीया नहीं जलाता है,
वह तो घर लौटने के अपने ही मार्ग पर
अंधेरा फैलाता है।-------------------------------------------------------अनंत कुमार पाषाण
इन सुंदर भावों के बाद...पेश है आप की कलम से लिखे हुए और मेरे द्वारा चयनित पांच लिंक...


हमारे देश के बड़े शहरों ने देश को बीमार किया हुआ है ! क्योंकि शक्ति एक जगह केन्द्रित हो गयी है जैसे मानव शारीर में गठिया वात हो जाता 

पिछले सत्तर सालों से लोकतंत्र के नाम पर सत्ता का विकेंद्रीकरण किया गया है जबकि विकास का विकेंद्रीकरण होना चाहिए था |
अकेले दिल्ली में सैकड़ों बड़े बड़े कॉलेज ! सैकड़ों बड़े बड़े अस्पताल ! बड़े बड़े अन्य तकनिकी संस्थान ! कार्यलय आदि सब एक ही स्थान पर कर दिए गए |
क्यों ??????????
आज कहा जायेगा वहां की जरुरत है इसलिए !
लेकिन ;
जरुरत पड़ी क्यों ! दिल्ली में भीड़ बढ़ी क्यों ?
टपकता है लहू...
ज़ुबां  कुछ  और  कहती  है  अमल  कुछ  और  होता  है
बताएं  क्या  मुरीदों  को  मियां  की  असलियत  क्या  है
मज़ाहिब  क़त्लो-ग़ारत  को  बना  लें  खेल  जब  अपना
हुकूमत  साफ़  बतलाए  कि  उसकी  मस्लेहत  क्या  है

तलाश आम आदमी की
लेकिन सवाल यह उठता है कि आम आदमी होता कैसा है,कहाँ पाया जाता है?आम आदमी भी कुछ कम नहीं,किसी को नजर ही नहीं आता.अगर कभी हमें दिख भी जाए तो पूछना लाजिमी
है कि वह कहां छुपा था.यह आर. के. लक्ष्मण के कार्टून का आम आदमी तो नहीं जो सीधे अखबार के पहले पन्ने पर दिख जाए.

धार्मिक उग्रवाद से व्यथित देश

पूरे भारत में इस्लामिक कट्टरता अपनी जड़ें फैला रही हैं। मुस्लिम युवाओं में विद्रोह के स्वर फूंकें जा रहे हैं। कई आतंकी संगठनों ने अपनी पहुँच इतनी मज़बूत
कर ली है कि हमारे सामने ही हमारा देश टुकड़ों में विभाजित नज़र आ रहा है।
भारत के लगभग-लगभग हर राज्य में मुस्लिम युवा बड़ी संख्या में इस्लामिक स्टेट की तरफ पलायन कर रहे हैं। अभी कुछ दिन पहले यूनाइटेड अरब अमीरात ने कुछ भारतियों
को इस्लामिक स्टेट से संपर्क की वजह से वापस भेजा था। ये हमारे तंत्र की विफलता है कि हम देश में होने वाली ऐसी घटनाओं पर नज़र नहीं रख पाते हैं।





मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक १ ,अक्टूबर २०१५ में

दिल में दर्द नहीं उठता है भूख गरीबी की बातों से
धर्म देखिये कर्म देखिये सब कुछ तो ब्यापार हुआ
मेरे प्यारे गुलशन को न जानें किसकी नजर लगी है
युवा को अब काम नहीं है बचपन अब  बीमार हुआ

आज बस इतना ही...
मिलते रहेंगे...
तब तक,   जब तक
 आप का स्नेह मिलेगा...
धन्यवाद...


3 टिप्‍पणियां:

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