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शनिवार, 24 अक्टूबर 2015

मुहर्रम




सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष

दो दिन बाद हम सेंचुरी पूरा करेंगे
आज 98 पोस्ट हो गये इस ब्लॉग पर


हरा भरा रहता मदिरालय, जग पर पड़ जाए पाला,
वहाँ मुहर्रम का तम छाए, यहाँ होलिका की ज्वाला,
स्वर्ग लोक से सीधी उतरी वसुधा पर, दुख क्या जाने,
पढ़े मर्सिया दुनिया सारी, ईद मनाती मधुशाला।।२५।








पूरे मुहल्ले में भरी पड़ी थीं लड़कियां
जैसे किताबों में भरे रहते हैं शब्द
निश्शब्द, मगर वाचाल
सब साथ मिल कर हंसतीं
तो पोखर में तरंगें उठने लगतीं
सब साथ मिल कर गातीं
तो लगता
आ गया मुहर्रम का महीना
या किसी की शादी का दिन

इस तरह खत्म होते हैं लोग


मुहर्रम इस्लाम धर्म में विश्वास करने वाले लोगों का एक प्रमुख त्योहार है। इस माह की उनके लिए बहुत विशेषता और महत्ता है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार मुहर्रम हिजरी संवत का प्रथम मास है। पैगंबर मुहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन एवं उनके साथियों की शहादत की याद में मुहर्रम मनाया जाता है। 

मुहर्रम एक महीना है जिसमें दस दिन इमाम हुसैन के शोक में मनाए जाते हैं। इसी महीने में मुसलमानों के आदरणीय पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब, मुस्तफा सल्लाहों अलैह व आलही वसल्लम ने पवित्र मक्का से पवित्र नगर मदीना में हिजरत किया था

मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना

कृष्ण के प्रेम में दीवानी मीरा जहाँ विषपान तक कर लेती है वहीँ भक्त रसखान अपने कृष्ण के ग्वालसखा बनकर गोकुल में ही बसने की इच्छा अगले जन्म के लिए भी रखते हैं :-
              "मानुष हौं तो वही रसखान बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन |"

"मोती झरना" का एक पुराना दृश्य


खनन खुमारी मे जने कब् तुमने
काट दी मेरी चोटी, कब् रेत दी मेरी नलेटी,
अभी भी वक़्त शेष है, उठो जागो ए पाषाण-हृदयी इंसानों
पर्वत और जीवन के चिरकालिक प्रणय को पहचानो,
सभ्यता हमेशा मेरी उँगलियाँ पकड़
समय की पगडंडियों पे चलती रही है,
पर तुम्हारी ये पीढ़ी सफलता की सीढ़ी
चढ़ने की होड मे विनाश के राह चल पडी है




देश बलिदान मांग रहा


चारो ओर हाहाकार मचा है
जुल्म के खिलाफ बोलना एक सजा है
न्याय मिले हर किसी को
ऐसा संविधान मांग रहा है


हूँ कारगिल का बलिदान सुनो

 झंडे का मान सुनो ,,, मैं गोबर लिपा गलियारा हूँ ,,, हूँ कच्चा जुडा मकान सुनो ,, दिन की घनी दुपहरी हूँ ,,, मैं खेत में जुता किसान सुनो,, मैं हल के मुठ्ठे की छोटे हूँ ,,, हूँ बैलो के बंधान सुनो ,,, मैं जौ बाजरे की रोटी हूँ ,, हूँ फुलवारी धान सुनो ,,, मैं आज चाहता हूँ देना परिचय,, हूँ भारत माँ का सम्मान सुनो,,


फिर मिलेंगे

तब तक के लिए

आखरी सलाम


विभा रानी श्रीवास्तव








4 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात दीदी
    सही दिन
    सही प्रस्तुति
    आनन्दित हुई
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. बढ़िया सामयिक हलचल प्रस्तुति
    आभार!

    जवाब देंहटाएं
  3. जुमला भा गया
    आहट है कैसी ? वक़्त ये कैसा है आ गया
    बनाकर बहाना गाय का कोई इंसान खा गया
    टूट पड़े सन्नाटे कल तक खामोशियाँ छाई थी
    दंगे ही दंगे है वक़्त -ऐ- हुड्दंग जो आ गया
    मिलकर भुगतो चुनली हुकूमतें हमने ऐसी ऐसी
    अफसोफ़ लोट के दौर -ऐ- रावण जो आ गया
    सहते आये थे फिर कुछ बदलने की आस थी
    अब ना कर शिकवा तब हमें जुमला जो भा गया

    जवाब देंहटाएं

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