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सोमवार, 10 अगस्त 2015

था वही राज़ का आलम...तेईसवां अंक

सादर अभिवादन
एक नया अल्फ़ाज़..
एक नयी शैली...
कुछ तो तो मिली..

जानकारी नयी....
तसाहुल..
तग़ाफ़ुल.. 
तजाहुल..
और..अब
तग़ज़्ज़ुल भी..

आज का आग़ाज़ इस श़ेर के साथ...

शोख़ी में शरारत में मतानत में हया में
जो राज़ का आलम था वही राज़ का आलम

-ग़ुलाम रब्बानी 'ताबाँ'

चलिए चलते हैं आगे....

आईने में उम्र हो गई 
लेकिन आईने से बाहर 
वो घेरेवाला फ्रॉक याद आता है 
वो ऊँची नीची पगडंडियाँ  … 
कहो पगडण्डी 
वो नन्हीं सी लड़की तुम्हें याद है ?


चौंक कर उठी झील,
डर के मारे चीखी,
गुस्से की तरंग उठी उसमें,
थोड़ा झपटी वह पेड़ की ओर,
पर छू नहीं पाई उसे,
कसमसा के रह गई.


तग़ज़्ज़ुल
1-क़दीमी तग़ज़्ज़ुल:-रिवायती लबो-लहज़े में चमत्कृत करने वाली बात,मसलन-हुस्नो-इश्क़ और जामो-मीना पर 
2-जदीदी तग़ज़्ज़ुल:-हुस्नो-इश्क़ और जामो-मीना से इतर चमत्कृत करने वाली बात
3-फ़िक्री तग़ज़्ज़ुल:-कोई गहरी चिंतनपरक चमत्कृत करने वाली बात


भूख आदमी को
बना देती है लाचार
करवाती है अपराध 
मंगवाती है भीख 
बिकवाती है ज़िस्म
नहीं कर सकता कोई
भूख की अवहेलना


सब कुछ
लगता है अच्छा  
अखरता है
तो ठहराव,
जल भराव,
कीचड़, सडांध   
नमी, दरारें
उनमें उगते
जंगली घास फूस
काई, बिछलन, फिसलन.

आज का अंक
सच में अच्छा ही बना
पर लगता है...
बहुत कुछ छूट भी गया..

चलती हूँ आज्ञा दें यशोदा को

चलते-चलते एक कव्वाली सुनाती हूँ....




















5 टिप्‍पणियां:

  1. शुभप्रभात...
    सभी रचनाएं...एक से एक हैं....
    आभार।

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह ! क्या कहने !
    Thanks for including my article too.

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति, सुन्दर सूत्र संकलन. मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार आदरणीया. क़व्वाली सुनकर आनंद आ गया, धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बढ़िया पंचलिंकी हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं

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