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बुधवार, 26 अगस्त 2015

बहुत असहनीय पीड़ा देता है....अंक-39


जय मां हाटेशवरी...

किसी अपने से बिछड़ने का गम...
बहुत असहनीय पीड़ा देता है....
पर जो आया है...
उसे जाना भी है...
ये रहे आज के 5 लिंक...

इस ज़माने में दाल - रोटी कमाने में
हौसला परास्त हो जाता है
ये जब देखती है
रात का अंधकार काले साए
अबला नारी चीख पुकार
अपहरण हत्या और अत्याचार
तब ये लाल हो जाती है
आरक्षण तो चाहिए ,कहता एक पटेल
सकते में सरकार भी ,बना रहा है रेल |
हमें हमारा चाहिए ,हक़ से सब सम्मान
वरना आता छीनना ,जागा हिंदुस्तान |


हम जीवन को कितने सीमित दायरे में समेट लेते हैं खुशियां सुविधाओं की कभी न ख़त्म होने वाली दौड़
के अंत में नहीं बल्कि हमारे आस-पास किसी न किसी कोने में हर वक्त मौजूद रहती हैं. बशर्ते हमें उन्हें ढूढ़ने की फुर्सत हो!
.................................................................................कोलोन (जर्मनी). दूसरे यात्री जब ट्रेन से उतरकर अपने घर जा रहे होते हैं, जर्मनी की कॉलेज स्टूडेंट लिओनी मुलर अपनी सीट पर जमी रहती है
लेकिन जैसा कि इस देश के हर योजना का मुफ्तखोर फायदा उठाते है इस योजना में भी हुआ| पंचायतों के अधीन कार्यान्वित होने वाली इस योजना में पंचायत प्रतिनिधियों
व सरकारी कर्मियों ने मिलीभगत कर कई ऐसे नाम जोड़ दिए जिन्हें मजदूरी की कोई जरुरत नहीं| फर्जी नामों के माध्यम से इस योजना का भी दुरूपयोग किया गया| योजना के
अंतर्गत करवाये गये ज्यादातर कार्यों में निर्धारित मापदंड का पालन नहीं किया गया| कार्य पर आने वाले मजदूरों ने बिना काम किये मजदूरी उठाई, काम पर आये भी दो
चार घंटे कार्य स्थल पर बिता कर चलते बने| इस तरह इस योजना ने हरामखोरी को पूरा प्रोत्साहन दिया| हरामखोरी की आदत पड़ने के चलते खेतों में मजदूरों की कमी हो
गई, जिससे कृषि पर विपरीत प्रभाव पड़ा| छोटे कुटीर उद्योग सबसे ज्यादा प्रभावित हुये| क्योंकि जब मुफ्त में, बिना मेहनत किये धन मिल रहा है तो कोई मेहनत क्यों
करे|

कुछ इधर फेंकना
कुछ उधर फेंकना
बाकी शेष कुछ हवा
को हवा में ऊपर
को उछालना
ये सोच कर
शायद
किसी को कुछ
नजर आ जाये
और लपक ले जाये
उस कुछ नहीं में से
कोई कुछ कुछ
अपने लिये भी

धन्यवाद...

4 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात कुलदीप भाई
    क्या हुआ...
    कैसे हुआ
    मैं इस घड़ी में
    आपके साथ हूँ
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. किस के जाने की पीड़ा की बात है कुलदीप जी ? सहन शक्ति दे आपको ईश्वर । आज की प्रस्तुति में 'उलूक' के सूत्र 'दलों के झोलों में लगें मोटी मोटी चेन बस आदमी आदमी से पूछे किसलिये है बैचेन' को जगह देने के लिये आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन लिंक । मेरी रचना को स्थान देने का बहुत बहुत शुक्रिया ।

    जवाब देंहटाएं

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