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रविवार, 7 दिसंबर 2025

4594 ...माई ! आज कितनी भीख मिली ?बुढ़िया ने जवाब दिया -' सुबह से आज कुछ नहीं मिला बेटा !' कि बेटे के रहते मां भीख मांग रही है।एक रुपैया बुढ़िया के हाथ पर रख कर बोले,

 सादर अभिवादन



एक बार हिंदी के महान साहित्यकार सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' जी रॉयल्टी के एक हजार रुपये लेकर, इक्के में बैठकर, इलाहाबाद की एक सड़क पर चले जा रहे थे।रास्ते में सड़क के किनारे एक बूढ़ी भिखारिन बैठी हुई थी। ढलती उम्र में भी वह हाथ पसार कर भीख मांग रही थी।उसे देखकर निराला जी ने इक्का रुकवाया और उनके पास गए, और पूछा - ' माई ! आज कितनी भीख मिली ?बुढ़िया ने जवाब दिया -' सुबह से आज कुछ नहीं मिला बेटा !'बुढ़िया के इस उत्तर को सुनकर निराला जी सोच में पड़ गए कि बेटे के रहते मां भीख मांग रही है।एक रुपैया बुढ़िया के हाथ पर रख कर बोले, ' मां अब कितने दिन भीख नहीं मांगोगी ?तीन दिन बेटा ।दस रुपये दे दूं तो…?बीस या पच्चीस दिन ।सौ रुपये दे दूं तो…?चार-पांच महीने तक !चिलचिलाती धूप में सड़क के किनारे मां मांगती गई, बेटा देता गया।इक्के वाला हक्का-बक्का रह गया।बेटे की जेब हल्की होती गई और मां के भीख न मांगने की अवधि बढ़ती चली गई।जब निराला जी ने रुपयों की अंतिम ढेरी भी बुढ़िया की झोली में डाल दी तो बुढ़िया खुशी से चीख उठी और कहने लगी, "अब कभी भी नहीं मांगूंगी बेटा, कभी नहीं।"निराला जी ने संतोष की सांस ली। बुढ़िया के पैर छुए । बुढ़िया ने उन्हें ढेरों आशीष और दुआएं दी ।निराला जी इक्के में बैठकर अपने घर की राह पर चल दिए। उनके चेहरे पर एक अजीब संतोष व फक्कड़ता का भाव था।

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नाम में बहुत कुछ रखा है



संयोगवश, कांग्रेस के प्रतिनिधित्व वाले इस इलाके में 9 और 11 दिसंबर को होने वाले केरल के पंचायत चुनावों में कांग्रेस के सबसे बड़े नेताओं में से एक श्रीमती सोनिया गाँधी का नामधारी, BJP का उम्मीदवार बन, सीधे कांग्रेस के ही उम्मीदवार से मुकाबला कर रहा है। 

अब देखने वाली रोचक बात यह है कि क्या सोनिया गांधी का नाम BJP के लिए फायदेमंद साबित होगा या वोटरों को सिर्फ भ्रमित करेगा ! परिणाम जो भी हो पर इस चुनाव ने एक ऐसे नाटिका का मंचन कर दिया है जिसके रिजल्ट का सभी को इंतजार रहेगा !




चार किताबें पढ़ कर हम-तुम ,
क्या विरले हो जाएँगे

मिटा न पाए मन का अँधेरा,
तो क्या उजले हो जाएँगे





कितना अच्छा लगता है
जब वह कहती है
मैं बात नहीं कर सकती
मन तो बहुत करता है
पर कोई न कोई हमेशा साथ होता है



पहाड़ी  ढलान   पर   से
सरकता   सांझ   का   वक्त
गुलाबी  लाल  से  सुरमाई बादल
सूरज  का   गोलाकार   रुप
प्रत्यक्ष  सीधे   अब  जाते - जाते
ज्यों  आँखें  मीचे  गीत  कोई
पहाड़ी  गाता  धुन  वो  जीवन
की   सुनाता    बंद  तरानों





हमें नमो घाट जाना था।इसका निर्माण अभी हुआ है।गंगा के घाटों में नमो घाट सबसे नवीनतम है।करीब दो घंटे बाद हम नमो घाट पर थे। अद्भुत,अद्वितीय।
नमो घाट पर हर सुविधा मौजूद थीं।टैक्सी वाले भैया ने हमें बताया कि कुछ साल पहले यहां झुग्गी-झोपड़ी वालों का निवास था। गंगा मां के निर्मलीकरण और सौंदर्यीकरण के दौरान उनका पुनर्वास कहीं ओर कराया गया और अब यह स्थान सबसे सुंदर और खुला-खुला है। यहां गंगा मां को नमन करते हुए हाथ बने हैं।

आज बस
सादर वंदंन




शनिवार, 6 दिसंबर 2025

4593 ..एक में दर्द है, इलाज है, धीरज है,

 सादर अभिवादन

शुक्रवार, 5 दिसंबर 2025

4592....शेष बचा हुआ ....

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शुक्रवारीय अंक में 
आप सभी का हार्दिक अभिनंदन।
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आज का विचार
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अज्ञः सुखमाराध्यः सुखातारामाराध्यते विशेषज्ञः|        ज्ञानलवदुर्विदग्धम ब्रह्मापि तं न रंजयति ||

भावार्थ – अज्ञानी व्यक्ति को सहज ही समझाया जा सकता है, विशेष ज्ञानी को और भी आसानी से समझाया जा सकता है. परन्तु लेश मात्र ज्ञान पाकर ही स्वयं को विद्वान् समझने वाले गर्वोन्मत्त व्यक्ति को साक्षात् ब्रह्मा भी संतुष्ट नहीं कर सकते।
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वो भी अपनी माँ की
आँखों का तारा होगा
अपने पिता का राजदुलारा 
फटे स्वेटर में कँपकँपाते हुए
बर्फीली हवाओं की चुभन
करता नज़रअंदाज़
काँच के गिलासों में 
डालकर खौलती चाय
उड़ती भाप की लच्छियों से
बुनता गरम ख़्वाब
उसके मासूम गाल पर उभरी
मौसम की खुरदरी लकीर
देखकर सोचती हूँ
दिसम्बर! तुम यूँ न क़हर बरपाया करो।
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आज की रचनाऍं- 


रात्रि
का दूसरा प्रहर, निःशब्द ओस पतन । जो
पल जी लिया हमने एक संग बस वही
थे अमिट सत्य, बाक़ी महाशून्य,
आलोक स्रोत में बहते जाएं
आकाशगंगा से कहीं
दूर, देह प्राण बने
अनन्य, लेकर
अंतरतम


वो ज़िंदगी जिसमें सपने
साइकिल के पैडल के साथ भागते थे,
और ये ज़िंदगी,
जहाँ कारें हैं, पर मंज़िल नहीं।

शायद हम बेहतर जी रहे हैं,
पर महसूस कम कर रहे हैं।
वो पुराने दिन सादे थे,
पर सुकूनदार,
ये आज के दिन चमकदार हैं,
पर थके हुए।





ये क्या है?
ये रोम-रोम में बहती गंग है,
ये मौन के मुख से फूटा गीत अभंग है।
ये दो पल की ओस, सदियों का सागर,
ये तुम्हारे होने का अनूठा अहसास है।



पारंपरिक मान्यता के अनुसार यह:
- आँखों की रोशनी बढ़ाने में सहायक
- डायबिटीज नियंत्रित करने वाला
- पाचन तंत्र को मजबूत करने वाला
- त्वचा रोगों में लाभकारी
- ज्वर और सूजन कम करने वाला
- एंटीबैक्टीरियल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों से युक्त है




बहू - " मृत व्यक्ति के परिवार द्वारा तयशुदा समय-सीमा में इन लोगों को सूचित करने पर ये लोग मृत व्यक्ति के दिए गए पते पर आकर बहुत ही आदरपूर्वक मृत देह ले जाते हैं। मृतक के उपयोगी अंगों को बाद में कई ज़रूरतमंद लोगों को शल्य चिकित्सा द्वारा लगा कर उन्हें नया जीवन प्रदान किए जाते हैं। जैसे .. आँखें, 'लिवर', 'किडनी'.. और भी बहुत कुछ और .. और तो और .. शेष बचा हुआ कंकाल 'मेडिकल स्टूडेंटस्' की पढ़ाई के काम में आ जाता है। "



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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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गुरुवार, 4 दिसंबर 2025

4591 ..डाल से टूट कर बिछड़ते हुए पत्तों को देखा है

 सादर अभिवादन

बुधवार, 3 दिसंबर 2025

4590..जस दृष्टि, तस सृष्टि..

 ।।प्रातःवंदन।।

और हर सुबह निकलती है

एक ताज़ी वैदिक भोर की तरह

पार करती है

सदियों के अन्तराल और आपात दूरियाँ

अपने उस अर्धांग तक पहुँचने के लिए

जिसके बार बार लौटने की कथाएँ

एक देह से लिपटी हैं..!!

कुंवर नारायण

सच हैं कि 

लौटने की कथाएँ एक देह से लिपटी है और इसी प्रकृति के संग संदेशात्मक सहअस्तित्व भाव के साथ नज़र डालें चुनिंदा लिंकों पर.

देखते रहो...

किस ओर चल रही है हवा देखते रहो।

किस वक़्त पे क्या क्या है हुआ देखते रहो। 


पाज़ेब पहन नाचती हैं सर पे बिजलियां,

आंखों के आगे काला धुंआ देखते रहो।

✨️

एक आवाज

 खो गयी एक आवाज शून्य अंधकार सी कही l

सूखे पत्ते टूटने कगार हरे पेड़ों डाली से कही ll

उलझी पगडण्डियों सा अकेला खड़ा मौन कही l

अजनबी थे लफ्ज़ उस अल्फाज़ मुरीद से कही ll

✨️

जस दृष्टि, तस सृष्टि !

धर्म सृष्टा हो समर्पित, कर्म ही सृष्टि हो,

नज़रों में रखिए मगर, दृष्टि अंतर्दृष्टि हो,

ऐब हमको बहुतेरे दिख जाएंगे दूसरों के, 

✨️

सुस्त कदम मेरे....

चलते चलते,....

रुक जाते ....

एक मोड पर ये 

थके थके, रुके रुके

अलसाए ...

✨️

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह ' तृप्ति '..✍️

मंगलवार, 2 दिसंबर 2025

4589....गीत नहीं मरता है साथी

मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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शीत बयार 
सिहराये पोर-पोर
धरती को छू-छूकर
जगाये कलियों में खुमार
बेचैन भँवरों की फरियाद सुन
दिसम्बर मुस्कुराया।

चाँदनी शबनमी
निशा आँचल में झरती 
बर्फीला चाँद पूछे
रेशमी प्रीत की कहानी
मोरपंखी एहसास जगाकर
दिसम्बर मुस्कुराया।
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आज की रचनाऍं-


रास्ते भटक गए हैं

और ढूढ रहे हैं 

अपने ही पदचिह्न

सिसक रहीं हैं जहाँ सिसकियाँ

हर कथन पर जहाँ हाबी हैं हिचकियाँ

 

मेरे ही सवाल

मेरे ही सामने

लेकर खड़ी हो गईं हैं

सवालों की तख्तियाँ

जवाब नदारत है

 




खेतों में ,फूलों में 
कोहबर 
दालानों में हँसता है ,
गीत यही 
गोकुल ,बरसाने 
वृन्दावन में बसता है , 
हर मौसम की 
मार नदी के 
मछुआरों सा सहता है |




आत्मा के द्वार पर 

ध्यान का हीरा जड़ें,

ईश चरणों  में रखी  

भाग्य रेखा ख़ुद पढ़ें !




धीरे-धीरे यह आदत फैलने लगी। अभय ने इसे नाम दिया—“रुकने का साहस अभियान।” उसने पोस्टर बनवाए, जिन पर लिखा था: “अगर ट्रैफिक सिग्नल नहीं है, तो इंसानियत ही सिग्नल बने।”

कुछ लोग हँसे, कुछ ने हॉर्न बजाया, लेकिन कई ने सीखा। राहगीरों के चेहरों पर भरोसा लौटने लगा। बच्चे अब डरते नहीं थे, महिलाएँ अब ठिठकती नहीं थीं।



कब से साफ सफाई से
बहुत साफ सुथरा सा लिख रहे कुछ
कुछ लिखा रहे हैं साफ कूड़ा कुछ 
कुछ सिखा रहे हैं सरताज कूड़ा 
कुछ पहले बेतरतीब लिख फ़ैला रहे थे
 जो कुछ घेर कर बाड़े में उनको
 सबक सीखा रहे हैं कुछ



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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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सोमवार, 1 दिसंबर 2025

4588 ...केवल ऊंचाई ही काफ़ी नहीं होती

 सादर अभिवादन

महीना बदल गया
सच्चाई यह है कि
वर्ष का समापन महीना

केवल ऊंचाई ही काफ़ी नहीं होती,
सबसे अलग-थलग,
परिवेश से पृथक,
अपनों से कटा-बँटा,
शून्य में अकेला खड़ा होना,
पहाड़ की महानता नहीं, मजबूरी है.

चलिए आगे बढ़ें




अगर तुम्हें औरत में आज भी
‘चीज़, खिलौना या वस्तु’  नजर आती है,
तो तुम्हे ज़रूरत है -
अपनी सोच का पोस्टमॉर्टम करने की।





आए हैं आप शायद
दिखलाने आईना मुझे
इस भरी महफ़िल में,
पर दिखेगा केवल
मुखौटा भर मेरा,
जान नहीं पायेंगे आप
बात जो है अभी मेरे दिल में।




हमी से की मोहब्बत हमी से शिकायत है
चलो छोड़ो ये तो तुम्हारी पुरानी आदत है

तुम वादा तो करो हम इंतज़ार ही कर लेंगे
कई दिनों से मेरे अंदर कुछ सुगबुगाहट है






प्रलय ले आई, छम-छम करती बूंदें,
गीत, कर उठे थे नाद,
डाली से, अधूरी थी हर संवाद,
बस, बह चली वो पात!


आज बस अब चलती हूँ
सादर

वर्ष का समापन महीना
आज रात 08 बजे से 10 मिनट तक




रविवार, 30 नवंबर 2025

4587 ..टहनियां बीन लाती हैं बगीचे से खाना पकाने के लिए

 सादर अभिवादन