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शुक्रवार, 21 नवंबर 2025

4578...कोई एक आवाज़ तक नहीं उठाता...

शुक्रवारीय अंक में 
आप सभी का हार्दिक अभिनंदन।
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ऊबा हुआ मन अलसा रहा है
निर्विकार ,तटस्थ,
स्वयं को घसीटते जा रहे
यात्राओं के रेगिस्तान में
छटपटाते हुए
सही-गलत के चुंबक के मध्य
भावशून्य होते विचारों के
अंतिम छोर पकड़े हुए
देखती हूँ
 आत्मा के 
गुरूत्वाकर्षण का भारमुक्त होकर
शून्य में विलीन होना...।
-श्वेता

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आज की रचनाऍं- 

दरअसल यह शेखपुरा जिला मुख्यालय का कटरा चौक है। यहां रजिस्ट्री ऑफिस था । 1934 से 1942 तक राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर यहां रजिस्ट्रार की नौकरी करते थे। उस दरमियान कई कविताएं लिखीं। कहा जाता है कि हिमालय कविता की रचना इसी धरती से दिनकर जी ने की। पर हमारा दुर्भाग्य कि कई साल पहले जहां स्मारक बनना था उस स्थल को ध्वस्त कर शौचालय और सब्जी मंडी बना दिया गया। अब फिर उसे तोड़कर सब्जी मंडी सजाया जाएगा। आधी रात को बुलडोजर चला। यह ऐसी धरती है कि कोई एक आवाज तक नहीं उठाता। 





मेरे बोने से है क्या उगता 
हरियाली भी उसी की है ,बंजर भी उसी के हैं 

अब छोड़ दिया उसी पर सब 
कठपुतली से नाचते हम , बंदर भी उसी के हैं 





“तुम कितने सुंदर और चटकीले हो प्यारे बुराँश 

तुम्हें देखकर रुक गई है मेरी श्वाँस 

आह! तुम्हारी आभा का मनमोहक तत्व 

भूल गई हूँ अपना और इस धरा का अस्तित्व

सच! तुम इस पृथ्वी पर ही हो या स्वर्ग में 

क्या कहूँ तुम्हारे वैभव के उत्सर्ग में 

मेरे शब्द फीके हैं और संदर्भ बेमानी 

निःशब्द हूँ चुप हो गई है मेरी वाणी”



ज्यादातर की ज़िंदगी


जो दूसरों के लिए दौड़ता रहता था दिन रात
आज उसके दुःख में कोई नहीं ठहरा है
जो लोगों में भरता रहता था सतत उत्साह
आज उसका ही दिल दुःख से भरा कमरा है




शिरोमणि आर महतो की कविताऍं


बाँध के बगल में 
खड़ा जामुन का  पेड़
अकड़ रहा - आदमी के इंतजार में
कि कहीं से कोई आये
और उसकी झुकी हुई डालियों को
तोड़ कर अपने घर ले जाये
फिर पूरा परिवार मिल जुल कर खाये - जामुन
बगीचे के सारे पेड़ हैं - उदास
कोई नहीं आता है पास
खेलने के लिए 'छूर' 'छुआ' 'छुआई'



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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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