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शुक्रवार, 22 अगस्त 2025

4488....राम नाम सत है...

शुक्रवारीय अंक में 
आप सभी का हार्दिक अभिनंदन।
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हरिशंकर परसाई का जन्म 22 अगस्त, 1924 को हुआ था।

वे हिंदी साहित्य में अपने व्यंग्य और कटाक्ष के लिए जाने जाते हैं। उनके विचारों में समाज, राजनीति, और मनुष्य के जीवन के प्रति गहरी समझ और आलोचनात्मक दृष्टिकोण झलकती है। उन्होंने अपने व्यंग्य के माध्यम से सामाजिक विसंगतियों, भ्रष्टाचार, और पाखंड पर तीखा प्रहार किया है। 

व्यंग्य लेखन अपेक्षाकृत कठिन विधा है, जिसमें अगर सावधानी न बरती जाए, तो यह भौंडा हास्य बन जाता है। लेकिन हरिशंकर परसाई ने इसमें संतुलन बैठाकर उसे हल्के-फुल्के मनोरंजन की परंपरागत परिधि से बाहर निकालकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा। उनकी व्यंग्य रचनाएँ हमारे मन में केवल गुदगुदी ही पैदा नहीं करतीं, बल्कि वे हमें सामाजिक वास्तविकताओं के बारे में सोचने पर मज़बूर करती हैं।


 आइये उनके लिखे कुछ उद्धरण पढ़ते हैं -


* "इस देश के बुद्धिजीवी शेर हैं, पर वे सियारों की बरात में बैंड बजाते हैं"।


*"राजनीति में शर्म केवल मूर्खों को ही आती है"।


*"न्याय को अंधा कहा गया है, मैं समझता हूं न्याय अंधा नहीं, काना है, एक ही तरफ देख पाता है". 


*"बेइज़्ज़ती में अगर दूसरे को भी शामिल कर लो तो आधी इज़्ज़त बच जाती है". 


* ईमानदारी कितनी दुर्लभ है कि कभी-कभी अख़बार का शीर्षक बनती हैं।


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आज की रचनाएँ-


चल पड़ता हूँ 
कई बार अपना जरूरी काम छोडकर भी 
और ज़ोर ज़ोर से चिल्लाता हूँ 
'राम नाम सत है , सबकी यही गत है'
ताकि मेरे भीतर के अहंकार की लहक पर 
पड़े थोड़ा पानी 


नमी


लग रही है दीमक
मूल्यों में, संस्कारों में 
स्वार्थ की दीमक
चट कर जाती है रिश्ते
इन खोखले तनों में 
नहीं उगती जीवन की कोंपल
नहीं खिलते फूल
सर्वनाश की आहट 
हर रोज सुनाई देती है 



पैसे मांगेगा ज़रूर, यही सोचते हुए मांगे उसे रुपए देने के लिए अपने 
पर्स में हाथ डाला इससे पहले मैं उसे रुपए देती इससे पहले उसने अपने 
कंधे पर झूलते हुए झोले से तीन साड़ियां निकाली और कहने लगा रु. नहीं 
चाहिए दीदी, हो सके तो इसमें से एक साड़ी खरीद लीजिए, 
मुझे ताली बजा कर मांगने वाली छवि से निकलने में मदद मिलेगी।





मगर लूना कहां मानने वाली थी, मां-बाप की भी एक न चली। उधर साल-छह महिने बाद पल्सर का रिश्ता भी गांव की एक भोली-भाली लड़की, स्कूटी से पक्का हो गया था। वक्त अपनी रफ़्तार से चलता रहा, लूना के मां बाप ने सेंकड़ों रिश्ते तलाशें मगर लूना किसी मे ये कमी, किसी मे वो कभी निकालती रही। और जब लूना ३७ की हुई तो रिश्ते आने ही बंद हो गये।




नेपोलियन ने फ्रांस क्रांति के दौरान पैदा हुए अराजक वातावरण का भरपूर लाभ उठाया और देखते ही देखते वह सैन्य अधिकारी होने के साथ फ्रांस का सम्राट तक बन गया। नेपोलियन ने सम्राट बनने के लिए भले ही हथकंडे अपनाए हों, लेकिन उसमें खतरा उठाने का साहस बहुत था और वह युद्ध नीति बनाने में बहुत माहिर था। बात 2 दिसंबर 1805 की है। 


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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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4 टिप्‍पणियां:

  1. ईमानदारी कितनी दुर्लभ है कि
    कभी-कभी अख़बार का शीर्षक बनती हैं।
    बेहतरीन अंक
    आभार माल देने के लिए
    वंदन

    जवाब देंहटाएं
  2. ईमानदारी कितनी दुर्लभ है कि
    कभी-कभी अख़बार का शीर्षक बनती हैं।
    बेहतरीन अंक
    आभार मान देने के लिए
    वंदन

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार श्वेता जी सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. आप यह अलख अभी भी जगाए बैठे हैं, जानकर प्रसन्नता हुई। सादर 🙏

    जवाब देंहटाएं

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