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मंगलवार, 12 अगस्त 2025

4478...कश्ती मैं अपने स थ में बेकार ले

मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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स्वतंत्रता मनुष्य के बौद्धिक विकास का द्योतक है।
ईश्वर ने हमें स्वतंत्र बुद्धि विवेक प्रदान किया है परंतु
सामाजिक नियमावली ने हमें मर्यादित रहना सिखलाया है।
किसी के द्वारा थोपे गये नियमों के विरूद्ध,जो किसी प्रगति में बाधक हो, बगावत करना और बात है पर सही गलत को समझे बिना हर बात  पर विरोध जताना क्या स्वतंत्रता है??
शायद आज की पीढ़ी स्वतंत्रता और स्वच्छंदता में भेद करना भूल गयी है। स्वतंत्रता का अर्थ अनुशासनहीनता तो नहीं न?? अपनी इच्छा से, अपने द्वारा तय किये गये मानकों में, ज्यादा से ज्यादा सुविधाजनक जीवन जीने की चाह, स्वयं को सर्वोपरि मानने का सुख और अपनों  की किसी भी सलाह को नज़र अंदाज़ करना निश्चय 
भटकाव की ओर अग्रसर करता है।

हमें यह समझना चाहिए कि स्वतंत्रता के पीछे कर्तव्यबोध और दायित्वों को पूरा करने का सारतत्व भी निहित है जिसे नकारना ही समस्या  उत्पन्न करना है। 

आज की रचनाएँ-



दरिया के बीच जाके मुझे तैरना पड़ा 
कश्ती मैं अपने साथ में बेकार ले गया 

आँधी नहीं है फिर भी परिंदो का शोर है 
जंगल की शांति फिर कोई गुलदार ले गया 

ख्वाबों में गुलमोहर ही साजता था जो कभी 
वो फूल देके मुझको सभी ख़ार ले गया





जो चीज़ बोई

वही फलेगी !

फ़ायदे की है जी

ये खरीददारी !

मिट्टी की नमी

मन में उतरेगी

नरमी आएगी

फुलवारी खिलेगी

खाद और पानी

देते रहो जी !






घड़ी दो घड़ी बैठो 

के जी जाएँ मुट्ठी भर सौगातें-सौगातें 


सुलझ ही जाएगा रिश्ता 

जो मन है सुलझाते-सुलझाते 






यह तो हुई विदेशों की बात ! इस विपत्ति पर हम क्या करेंगे ? हमारा क्या रुख रहेगा ? भारत की जनता क्या करेगी ? भारत के छोटे-बड़े व्यापारी क्या करेंगे ? हमारे मॉल और रिटेल आउटलेट इस ओर कौन सा कदम उठाएंगे ?  क्या हम अभी भी अमेरिकन उत्पादों के माया जाल में फंस अपने देश का अहित करते रहेंगे ?  यह सारे सवाल मुंह उठाए खड़े हैं ! ऐसे सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि कुछ विदेशी ताकतों की कठपुतलियां, मतलबपरस्त, सत्ता-लोलूप, दासत्वबोध से ग्रसित, देश-द्रोही लोग हमें गुमराह करने के लिए प्राणपण से जुटे हुए हैं ! वे नहीं चाहते कि अपना देश, दुनिया में एक ताकत बन कर उभरे ! पर उन्हें और उनके आकाओं को यह आभास तक नहीं है कि जब हमारी विशाल सागर सदृश आबादी उनके विरोध में उठ खड़ी होगी तो उनका क्या हश्र होगा ! 



सड़क पर चलेंगे तो नियम नहीं मानना, नशा भी ऐसा सीखा की देखने मे भी गंदे दिखते हैं, फिर गुटखा खा खाकर सड़क, ऑफिस, घर से लगाये लिफ्ट तक गंदा करते है। उसके बाद बीमारी भी गंदी होती है। खाना खायेंगे तो बहुत जगह मक्खी भिनकते रहना सामान्यता बनी हुई है। घर बनवायेंगे तो बाथरूम और टॉयलेट इतने कम जगह में बनवायेंगे की मानो वह कोई बहुत महत्वपूर्ण चीज नहीं है। कुल मिलाकर साफ़ सफ़ाई सबसे पीछे छूटा हुआ है। अच्छे कमाई करने वाले लोग भी अपने घर में एक एक बेडशीट, तकिये का कवर इतने इतने दिन तक इस्तेमाल करते हैं कि उसमें तेल की इतनी मोटी परत बन जाती है कि पूछिए ही नहीं। कूड़ा निकालेंगे तो घर के बाहर फेक देंगे। कार से चलते हुए प्लास्टिक, चिप्स की पन्नी कहीं भी फेंक देंगे। 



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आज के लिए इतना ही 
मिलते हैं अगले अंक में।

6 टिप्‍पणियां:

  1. दरिया के बीच जाके मुझे तैरना पड़ा
    सुंदर प्रस्तुति
    आभार
    वंदन

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर और सशक्त भूमिका के साथ सुंदर अंक प्रिय श्वेता

    जवाब देंहटाएं
  3. आपका हृदय से आभार. सादर अभिवादन. सभी मित्रों का हृदय से आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. अनुभूतियों और सामाजिक सरोकार जताती रचनाओं का बेहतरीन संकलन प्रस्तुत करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद और बधाई, श्वेता जी । इस वैचारिक सम्मेलन में भाग लेकर अच्छा लगा ।
    सभी रचनाकारों का आभार । नमस्ते ।

    जवाब देंहटाएं

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