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शनिवार, 19 जुलाई 2025

4454....दूसरों. के श्रम का सम्मान करना सीखिए

शनिवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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दिग्विजय सर अस्वस्थ हैं इसलिए आज
आनन-फानन,लेट-लतीफ़ अंक।

आज की रचनाएँ
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है यहाँ चिरस्थायी, फिर भी हम बुनते हैं
नित नए सपनों के शीशमहल, कितने
अभिलाषों का कोई अभिलेख
नहीं होता, फिर भी हम
लिखते हैं रेत पर
उम्मीद भरी
कविता



और इसी प्रकार उस कल की जो अभी तक आया ही नहीं जिसके वास्तविक यथार्थ से आप अपरिचित है उसकी चिंता में घुन की तरह धुनना और अपने निकट वर्तमान की बलि चढ़ा देना अपने भविष्य के साथ एक तरह से खिलवाड़ ही है । जो बीत गया और जिसका अभी कुछ पता ही नहीं इन दोनों के बीच की अनसुलझी कशमकश जिदंगी को दो राहों पर लाकर खड़ा कर देती है , इन दोनों ही राहों में आपका रास्ता कोई नहीं है , ये तो मात्र दुविधा है । 




स्वामी जी ने कहा कि कल से रसोई की जिम्मेदारी आपकी है। अगले दिन उस किसान ने जो रोटियां बनाई, उसकी सबने प्रशंसा की। कुछ दिनों बाद वह दिन भी आया, जब पहले की तरह अधपकी रोटियां बनने लगीं। एक दिन तो काफी देर तक किसान रसोई घर में भी नहीं आया। यह बात स्वामी जी को पता चली तो उन्होंने उससे पूछा, तो उसने कहा कि मैं रोज-रोज रोटियां बनाते-बनाते ऊब गया हूं, इसलिए देर से आया। 



तुम तो सच में जादूगर हो...लड़की ने सारा रूठना बिसरा दिया और लड़के के सीने में धंस गयी। तभी गुटर गूँ करते बादलों में से कुछ बादल उठे, अंगड़ाई ली और निकल पड़े अपनी बूंदों की पोटली लिए। नन्ही फुहार समूची झील पर ऐसे झर रही थीं जैसे झरती है उम्मीद
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आज के लिए इतना ही 
मिलते हैं अगले अंक में।

3 टिप्‍पणियां:

  1. आनन फ़ानन में भी सुंदर अंक! दिग्विजय भाई के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करती हूँ!प्यार और शुभकामनायें प्रिय श्वेता ❤️❤️🙏

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  2. सुंदर रचनाओं से सुसज्जित अंक में मेरे ब्लॉग को सम्मिलित करने के लिए आभार !

    जवाब देंहटाएं

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