अंधभक्त - ये उन लोगों के लिए वितृष्णा के साथ प्रयोग में लाया जाता है, जिन्हें तथाकथित रूप से सत्ता पर काबिज दल के हिमायती के रूप में देखा जाता है ! पर असलियत में ऐसा है नहीं ! कुछेक को छोड़ कर हमारे देश के लोग, जब तक मोह-भंग न हो जाए या असलियत सामने ना आ जाए, तब तक हर उस इंसान या दल का साथ देने को तत्पर रहते हैं, जिसको वह देश हितैषी समझते हैं ! आजादी के बाद से कई बार इसके उदाहरण मिलते रहे हैं ! ऐसे लोग बहुत भावुक होते हैं। देश के लिए समर्पित। इसीलिए कभी-कभी भावनाओं के वश में हो धूर्तों के वाग्जाल में फंस, धोखे में आ, उनको भी सर पर बैठा लेते हैं ! पर सच सामने आते ही उन्हें धूल चटाने से भी बाज नहीं आते ! कुछ लोग इन्हीं लोगों की भावनाओं से कुंठित और लगातार अपनी अवनति के चलते, उन्हें व्यंग्यात्मक शब्दों का निशाना बना लेते हैं ! पर सच्चाई यही है कि इस श्रेणी के भक्तों के लिए देश सबसे पहले और सर्वोपरि होता है !
पब्लिक उनसे अधिक चतुर है ।वह सरकार के भरोसे नहीं बैठी है।रील बना-बनाकर ही हमारी मिसाइलें गिरा रही है।ऐसा युद्ध है जिसमें सब स्वयं को विजयी मान रहे हैं।’
सहसा धृतराष्ट्र सहम उठे। ‘यह राज-प्रासाद क्यों कंपित हो रहा है संजय, क्या शत्रु ने ब्रह्मास्त्र छोड़ा है ?’ नहीं,नहीं राजन ! यह तो हमारे ही चैनल में बैठा एक असैन्य-विशेषज्ञ है, जो अपनी हुंकार से ही स्टूडियो को दहला रहा है।ऐसा प्रतीत हो रहा है कि उसके ‘ध्वनि-विस्फोट’ से ही शत्रु की आधी सेना साफ़ हो जाएगी और दुश्मन ‘पानी’ माँगने लगेगा !’ अचानक संजय चीखने लगे, ‘ महाराज,समाचार फिर से टूट रहे हैं।युद्ध-विराम की घोषणा हो गई है।कोई तीसरा दावा कर रहा है कि उसने ही युद्ध-विराम करवाया है।यह खबर आते ही हमारे चैनलों ने फिर से बमबारी शुरू कर दी है !’
बचपन की गलियों में गिल्ली डंडा
और बैट बाल साथ खेलने वाले जो बच्चे
बुढ़ापे में भी संग बैठे गपियाते हैं,
वही असली दोस्त कहलाते हैं।
कॉलेज में संग उठना बैठना, खाना पीना
पिक्चर जाना और दोस्त के भाई बहन
और मात पिता से जो घुल मिल जाते हैं,
वही असली दोस्त कहलाते हैं।
मजबूरी वश या भलपन में, सहे जो अत्याचार
जख्म हरे हो कहते मन से , करो तो पुनर्विचार
तन मन ताने देकर करते साफ-साफ इनकार,
बोले अब न उठायेंगे, तेरे पुण्यों का भार
तन्हाई भी ताना मारे, कहती छोड़ो साथ
सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात
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आज बस
सादर वंदन
खूबसूरत प्रस्तुति
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