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बुधवार, 30 अप्रैल 2025

4474...लौटने की कथाएँ..

 

।।प्रातःवंदन।।

"और हर सुबह निकलती है

एक ताज़ी वैदिक भोर की तरह

पार करती है

सदियों के अन्तराल और आपात दूरियाँ

अपने उस अर्धांग तक पहुँचने के लिए

जिसके बार बार लौटने की कथाएँ

एक देह से लिपटी हैं..!!"

कुंवर नारायण

प्रकृति संग संवाद और नजर डालें चुनिंदा लिंकों पर...✍️

कर्म ही तेरी पहचान है

कंटक मय पथ तेरा ,

सम्भल- सम्भल कर चलना है !

चलन यही दुनिया का,

पत्थर में तुमको ढलना है!!

✨️

जीवन का जो मोल न जानें 



दुश्मन मित्र बने बैठे हैं 

बाहर वाले लाभ उठाते, 

लोभ, मोह से बिंधे यदि जन 

बाहर भी निमित्त बन जाते 

तुम जाओ

अब मेरी जरूरत क्या 

हो आज़ाद, तुम जाओ 

मैं बरबस राह का कांटा 

इसे निकाल, तुम जाओ ..

✨️

सलवट-सलवट चेहरा


झुर्री-झुर्री हाथ हुए हैं ,सलवट-सलवट चेहरा 

खो ही गया वो नन्हा बच्चा,

बड़ा हुआ था पहन के जो 

अरमानों का सेहरा ..

✨️

अपनो को पाए है

करुणा और क्रंदन के 

गीत यहां आए है 

सिसकती हुई सांसे है 

रुदन करती मांए है ..

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह ' तृप्ति '..✍️





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