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रविवार, 9 मार्च 2025

4422 .... कैसे मान लूँ कि ये मेरा दिवस है या हमारा दिवस है

 सादर अभिवादन



राधा कोई स्त्री नहीं थीं। भगवान जी ने सृष्टि की रचना की और मनुष्य की परीक्षा लेने के लिए इस संसार रूपी मायाजाल की रचना की। यह माया ही राधा हैं, ईश्वर और माया का संबंध सनातन है। माया के मोहजाल से छूटकर ही हम ईश्वर को पा सकते हैं।

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अंधियारे सी गुम रही
चाहत की एक शाख
अंधियारी एक रात रही
अंधियारी एक आंख

अंधे को है दिखा नहीं
कुदरत का यह रूप
जीवन केवल छांव नहीं
है सूरज की धूप




कैसे मान लूँ कि ये मेरा दिवस है
या हमारा दिवस है ?
'हम' शब्द तो उनके लिए
ठीक रहता है जो जुड़े हों
हम तो बँटे ही रहे हमेशा
साथ भी आए कभी, तो
स्वार्थ के धागे से ही जुड़े थे






मरा    मरा       करके      तुमने  
राम      नाम      बतलाया
तुतलाती     बोली      को     तुमने  
इतना     कुछ      समझाया
थाम     के      मेरी     उँगली  
मुझको     कांटों    में    चलना    सिखलाया




जब कदम ताने सुने हैं
पर निकलते छोकरी के
ताज मिलता मूढ़ता का
तथ्य कहते नौकरी के
राग छेड़े काग कड़वे
रो रही कोकिल बिचारी।।


आज बस
सादर वंदन

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