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बुधवार, 5 मार्च 2025

4418. हकीकत जाने सभी..

" उषा का अवलोक वदन।

किस लिये लाल हो जाती हो।

क्यों टुकड़े–टुकड़े दिनकर की।

किरणों को कर पाती हो।।

क्यों प्रभात की प्रभा देखकर।

उर में उठती है ज्वाला।

क्यों समीर के लगे तुम्हारे

तन पर पड़ता है छाला।।"

 हरिऔध

बुधवारिय प्रस्तुतिकरण और चंद वैचारिक रूप आप सभी के लिए..✍️

लघुकथा का काव्यात्मक रूपांतरण । शेख शहज़ाद उस्मानी

 चन्द्रेश कुमार छतलानी (उदयपुर, राजस्थान) की लघुकथा के काव्यात्मक रूपांतरण का एक प्रयास -

शीर्षक : विधवा धरती

(अन्य शीर्षक सुझाव: कितने बार विधवा?)

रक्तरंजित सुनसान सड़कें थीं, 

तो दर्द से चीखते घर, बस। ..

✨️

इल्युमिनाटी स्कूल का है 

 मैंने पहले मौन चुना

तब ईश्वर छोड़ा

बहुत शौक़ रहा उसे

सफेद संगमरमर के

बुतों के पीछे छुपने का,

बुत बनने का..

✨️

प्रेम

 माफ करना प्रिय

मैं नहीं तोड़ पाया 

तेरे लिए चांद

देखो न मैंने बनाई है रोटी

लगभग गोल सी

चांद के आकार सी 

आओ खा लो न! 

✨️

करें आलोचना वो असल दोस्त हैं

आपकी क्या हकीकत ये जाने सभी, 

अपना चेहरा छुपाने से क्या फायदा?

भूल अपनी अगर दिल पसीजा नहीं, 

फिर ये गंगा नहाने से क्या फायदा?

✨️

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️



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