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रविवार, 2 मार्च 2025

4415 ...अपनी सार्थकता की तलाश जारी है ।

सादर अभिवादन

रविवार

आज से रमजान का महीना शुरु
रमजान इस्लाम धर्म का एक ऐसा पवित्र महीना है 
जो मुस्लिम समुदाय के लिए 
बहुत खास है. यह इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना है,
जहां लोग रोजा यानी उपवास रखते हैं 
और अपना समय इबादत में बिताते हैं.

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गिरिजा कुलश्रेष्ठ
जीवन के छह दशक पार करने के बाद भी खुद को पहली कक्षा में पाती हूँ ।अनुभूतियों को आज तक सही अभिव्यक्ति न मिल पाने की व्यग्रता है । दिमाग की बजाय दिल से सोचने व करने की आदत के कारण प्रायः हाशिये पर ही रहती आई हूँ ।फिर भी अपनी सार्थकता की तलाश जारी है ।



केवल दूरी नहीं काफी
दूरियों के लिये .
नज़दीक होकर भी
बढ़ जाती हैं ,दूरियाँ  
जब होती है बीच में ,
व्यस्त चौड़ी सड़कें .
सड़कों पर अविराम यातायात...


अनुपमा त्रिपाठी
एम् .ए(अर्थशास्त्र)में किया.(महाविद्यालय)में पढ़ाया .आकाशवाणी में गाया और फिर सब सहर्ष छोड़ गृहस्थ जीवन में लीन हो गई .अभी भी लीन हूँ किन्तु कुछ मन में रह गया था जो उदगार पाना चाहता था .अब जब से लिखने लगी हूँ पुनः गाने लगी हूँ ...मन प्रसन्न रहता है .परिवार ...कुछ शब्द और एक आवाज़ .....बस यही परिचय है ....आप सभी मित्रों से स्नेह की अभिलाषा है .....




कह तो लूँ .....
पर कोयल की भांति कहने का ...
अपना ही सुख है ...

बह तो लूँ ......
पर नदिया की भांति बहने का .....
अपना ही सुख है ...



रश्मि प्रभा
मेरे एहसास इस मंदिर मे अंकित हैं...जीवन के हर सत्य को मैंने इसमें स्थापित करने की कोशिश की है। जब भी आपके एहसास दम तोड़ने लगे तो मेरे इस मंदिर में आपके एहसासों को जीवन मिले, यही मेरा अथक प्रयास है...मेरी कामयाबी आपकी आलोचना समालोचना मे ही निहित है...आपके हर सुझाव, मेरा मार्गदर्शन करेंगे...इसलिए इस मंदिर मे आकर जो भी कहना आप उचित समझें, कहें...ताकि मेरे शब्दों को नए आयाम, नए अर्थ मिल सकें ...



मैं एक माँ हूँ
जिसके भीतर सुबह का सूरज
सारे सिद्ध मंत्र पढता है
मैं प्रत्यक्ष
अति साधारण
परोक्ष में सुनती हूँ वे सारे मंत्र  ...
ॐ मेरी नसों में
रक्त बन प्रवाहित होता है
आकाश के विस्तार को
नापती मापती मैं
पहाड़ में तब्दील हो जाती हूँ


और अंत में मेरे ब्लॉग से दो रचनाएं



वही कृष्ण राधा बन डोले
प्रेम रसिक बन अंतर खोले
मीरा की वीणा का सुर वह
बिना मोल के कान्हा तोले !

बालक,  युवा, किशोर, वृद्ध हो
हुआ प्रेम से ही पोषित उर  
हर आत्मा की चाहत प्रेम
खिलती भेंट प्रीत की पाकर  !



रखता तीन गुणों को वश में  
मन अल्प, चंद्रमा लघु धारे,
मेधा बहती गंगधार में
भस्म काया पर, सर्प धारे !

नीलगगन सी विस्तृत काया
व्यापक धरती-अंतरिक्ष में,  
शिव की महिमा शिव ही जाने
शक्ति है अर्धांग  में जिसको !

अनीता कथन-
यह अनंत सृष्टि एक रहस्य का आवरण ओढ़े हुए है, काव्य में यह शक्ति है 
कि उस रहस्य को उजागर करे या उसे और भी घना कर दे! 
लिखना मेरे लिए सत्य के निकट आने का प्रयास है.


आज बस
वंदन

5 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात ! जैसा कि आप जान रहे हैं, आज के अंक में प्रस्तुत रचनाओं का चयन मैंने किया है, गिरिजा जी, अनुपमा जी व रश्मिप्रभा जी को पढ़ते हुए हमें वर्षों हो गये हैं, हम ब्लॉग जगत पर एक दशक से अधिक समय से सहयात्री रहे हैं। उनकी एक रचना का चयन सरल नहीं था, आशा है उन्हें व आप सभी पाठकों को इस चयन से संतोष प्राप्त होगा। किसी कवि या कवयित्री के ह्रदय की थाह लेना अति कठिन है, आप सब भी इस सत्य से अवगत हैं, और समाज के प्रति उनके देय की जितनी सराहना की जाए, कम है। भाव जगत में विचरना और उन मूल्यों को पुन: स्थापित करने का निरंतर प्रयास करना, जिनके बिना मानव मानव ही नहीं रह जाता, उनका सहजकर्म है। आज के अंक में प्रस्तुत रचनाओं को पढ़कर आप अवश्य अपनी राय दें, और कविता की इस निर्मल सरिता को बहते रहने के लिए मार्ग बनायें। 'पाँच लिंकों के आनंद' के संयोजक श्री दिग्विजय जी का का ह्रदय से आभार !

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    उत्तर
    1. अनीता जी ,आप जैसी पाठक मैंने नहीं देखी । मेरे ब्लाॉग पर कोई आए न आए आप अवश्य आती हैं और अपने शब्दों से मेरी साधारण रचनाओं को भी एक स्तर देती हैं । यहाँ के लिये आपके द्वारा रचना का चयन इसे और पुष्ट करता है । आपके लिये आभार धन्यवाद बहुत तुच्छ शब्द हैं ।

      हटाएं
  2. बहुत बहुत आभार आपका दिग्विजय जी। खेद है कि मैं ब्लाॉग देख नहीं पाई । आदरणीया अनीता जी की टिप्पणी से मुझे इस रचना के यहाँ शामिल होने का सूचना हुई । अनीता जी के लिये कुछ कहने मेरे पास शब्द नहीं । वे मेरी साधारण रचना को भी पढ़ती हैं और प्रेरित करती हैं ।

    जवाब देंहटाएं

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