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मंगलवार, 25 फ़रवरी 2025

4410...कब तलक छूने गगन को, व्यग्र हो...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया मीना शर्मा जी की रचना से। 

सादर अभिवादन

मंगलवारीय अंक में आज पढ़िए पाँच ताज़ातरीन रचनाएँ-

व्योम

रात यूँ भागती, कौन से देश को,

साथ जो ले चली,श्यामला वेश को।

चाँद भी जा रहा, नीम तारे छटे,

पूर्व है जागता, कालिमा अब घटे।

शुभ्र आभा झरे, भोर में राग है

व्योम के भाल पर,सूर्य की अरुणिमा।

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अपने हृदय में अब मुझे विश्राम दो

परिक्रमा कब तक करेगी सूर्य की,

कब तलक करे स्वयं का परिभ्रमण!

कब तलक छूने गगन को, व्यग्र हो

काल्पनिक क्षितिज का यह करे वरण!

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1207-मेरे बचपन का साथी

एक दिन गाँव छूटा तो जिसके साए में मेरा बचपन बीतावो पेड़ भी छूट गया मगर वक्त की राह पर हर पल बहुत याद आए वो कागज- से फूल और बगैर खुशबू के महकाते रहे मुझे बेसाख़्ता मेरी यादों में आ- आकरके। बचपन में मुझे उस पेड़ का नाम भी नहीं पता थापता थी तो बस बारह मास उसके खिलने की आदत।

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वृद्धावस्था पर मेरी 51 हिन्दी कविताओं का संकलन बूढ़ा पेड़

एक दिन गाँव छूटा तो जिसके साए में मेरा बचपन बीतावो पेड़ भी छूट गया मगर वक्त की राह पर हर पल बहुत याद आए वो कागज- से फूल और बगैर खुशबू के महकाते रहे मुझे बेसाख़्ता मेरी यादों में आ- आकरके। बचपन में मुझे उस पेड़ का नाम भी नहीं पता थापता थी तो बस बारह मास उसके खिलने की आदत।

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काम ही पूजा है

आज सुबह भी कुछ ऐसा ही था, हम जल्दी पहूंच गये और उन्होने जस्ट सब सैट ही किया था , मैं भी जल्दबाजी में थी क्योकि घर आकर शगुन का नाश्ता टीफिन दोनों बनाना था। हमने कहां कि आज तो लेट हो जायेगा आपको, हम कल आते है लेकिन भैयाजी कहाँ मानने वाले थे । उन्होने कहा कि नयी मशीन लाये है , आपको आज तो पीकर ही जाना होगा, अभी बनाकर देते है। मुझे सच में देर हो रही थी लेकिन फिर भी उनके आग्रह को मना न कर सके और वो अपनी नयी मशीन को हमे दिखाने लगे कि 36000 की ली है।

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फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


5 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर अंक।
    मेरी कविता को अपने ब्लॉग में स्थान देने के लिए हार्दिक आभार।

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. मेरी रचना को यह मान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय रवींद्र जी.

    जवाब देंहटाएं

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