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गुरुवार, 13 फ़रवरी 2025

4398...मैं खुशबू के साथ नहीं उड़ पाता हूँ...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय जयकृष्ण राय तुषार जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय प्रस्तुति में आज पढ़िए पाँच पसंदीदा रचनाएँ-

प्रार्थना का मूल रूप

विह्वल मन होठों को सी देंगे

अश्रु आंखों के सब कह देंगे

संवाद नही मौन चाहिए .....

प्रभु मौन की भाषा समझ लेंगे।।

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जीवन स्रोत

जहां एकत्व है और स्वतंत्रता

अटूट शाश्वत समता

जो अर्जित की गई है

पूर्णता की धारा से

जहाँ आश्रय मिलता है

हर तुच्छता की कारा से

*****

एक प्रेमगीत -उसकी यादों में मैं गीत सुनाता हूँ

यात्राओं में मिला

मगर संवाद नहीं,

इंद्रधनुष को

बंज़रपन की याद नहीं,

नये नये चंदन वन

की ये खुशबू है

मैं खुशबू के साथ

नहीं उड़ पाता हूँ.

*****

ज़िंदगी कैसे हाथ से फिसल रही..

स्वप्न हुए ठेर है

रेखाओं के सब फेर है

संकेत है या संघर्ष है

हर मार्ग में बस गर्द है

हार ही हार है

प्रलय का अंधकार है

दुखों की आँधी चल रही

ज़िंदगी कैसे हाथ से फिसल रही

*****

आपका स्वप्न-भंग

राजनीति के लिए पैसा चाहिए और आम आदमी पार्टी भी सत्ता के उन स्रोतों तक पहुँच गई, जो प्राणवायु प्रदान करते हैं। यह पार्टी इस प्राणवायु के स्रोत बंद करने के नाम पर आई थी और ख़ुद इस 'ऑक्सीजन' की शिकार हो गई। सब कुछ केवल पार्टी के विरोधियों की साज़िश के कारण नहीं हुआ। आपका दोष केवल इतना नहीं है कि उसने एक सुंदर सपना देखा और उसे सच करने में वह नाकामयाब हुई। ऐसा होता तब भी गलत नहीं था। अब हालत यह है कि कोई नया सपना देखने वालों पर जनता भरोसा नहीं करेगी। वस्तुतः आपयह साबित करने में फेल हुई कि वह आपकी पार्टी है।

*****

फिर मिलेंगे।

 रवीन्द्र सिंह यादव 

 

4 टिप्‍पणियां:

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