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गुरुवार, 6 फ़रवरी 2025

4391...तमाम नक़ली मुखौटे उतर जाएंगे सुबह के साथ,

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय शांतनु सान्याल जी की रचना से। 

 सादर अभिवादन। 

गुरुवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ। आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

अनुत्तरित--

*****हरेक पैर में एक ही जूता नहीं पहनाया जा सकता है

कोई जगह नहीं मनुष्य ही उसकी शोभा बढ़ाता  है। 
बढ़िया कुत्ता बढ़िया हड्डी का हकदार बनता है ।।

एक मनुष्य का भोजन दूसरे के लिए विष हो सकता है ।

सबसे  बढ़िया  सेब को  सूअर  उठा ले  भागता  है।।
*****
1448-बिन माँ का बच्चा
*****कबिरा सोई पीर है- पहला उपन्यास
प्रियदर्शन जी ने उपन्यास पढ़कर जब मुझे फोन किया था, मुझे लगा जैसे मेरा रिजल्ट आने वाला है। लेकिन जब उन्होंने कहा, 'यह उपन्यास एक सांस में पढ़ा जाने वाला उपन्यास है’ तो काफी देर लगी इस बात को जज़्ब कर पाने में। फिर उन्होंने इसी बात को ब्लर्ब में कुछ इस तरह लिखा, ‘इसमें संदेह नहीं कि यह उपन्यास एक सांस में पढ़ा जा सकता है, लेकिन उसके बाद जिस गहरी और लंबी सांस की ज़रूरत पड़ती है, वह कहीं हलक में अटकी रह जाती है। *****ललिता का बेटा
अभी अपने स्कूल पहुंची ही थी कि राजेंद्र को एक छोटे से बच्चे के साथ आते देखा ! अंदाज हो गया कि बच्चा उसी का होगा ! कुछ ही देर में इसकी पुष्टि भी हो गई ! उसने बताया कि वह अपने बच्चे का दाखिला करवाने आया है ! मेरी आँखों के सामने पिछले पैंतीस साल किसी फिल्म की तरह गुजर गए ! तब मुझे साल भर ही हुआ था, छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर शहर के इस स्कुल में शिक्षिका के रूप में काम करते, जब ललिता अपने इसी बेटे राजेंद्र को मेरे पास लाई थी, स्कुल में प्रवेश के हेतु। आज वही राजेंद्र मेरे सामने खड़ा है, अपने बेटे का हाथ थामे और आज साल भर ही  रह गया है, मेरे रिटायरमेंट में ! अजब संयोग था !*****फिर मिलेँगे रवीन्द्र सिंह यादव 

5 टिप्‍पणियां:

  1. अपने मन के मरुथल में
    इच्छाओं के बीज बोता है
    इच्छाएँ जो कभी फली- फूली नहीं
    सुंदर अंक
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर अंक।
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार।

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. रवीन्द्र जी,
    रचना को सम्मिलित कर मान देने हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद !
    स्नेह बना रहे 🙏

    जवाब देंहटाएं

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