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शुक्रवार, 20 दिसंबर 2024

4343....तिरियाचरित्र का ताना

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।

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वो भी अपनी माँ की
आँखों का तारा होगा
अपने पिता का राजदुलारा 
फटे स्वेटर में कँपकँपाते हुए
बर्फीली हवाओं की चुभन
करता नज़रअंदाज़
काँच के गिलासों में 
डालकर खौलती चाय
उड़ती भाप की लच्छियों से
बुनता गरम ख़्वाब
उसके मासूम गाल पर उभरी
मौसम की खुरदरी लकीर
देखकर सोचती हूँ
दिसम्बर तुम यूँ न क़हर बरपाया करो।
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आज की रचनाएँ-

पुराने मोड़ से रस्ते


तेरे हाथ भी जोड़ने से कुछ न हुआ होता
जाने वाले तो हर बात पे निकल जाते हैं

इतना भी गुमान ना कर अपनी ख़ुदाई का

तमाम ख़ुदा आख़िर में पत्थर निकल जाते हैं 




पंछी के पैरों में ज़ंजीरें नहीं बंधी 
वह चाहे तो उड़ सकता है 
पिंजरा खुला है 
हर बंधन ढीला है 
एक भ्रम है 
 स्वतंत्र है हर आत्मा
स्वतंत्रता उसका 
जन्मसिद्ध अधिकार है !



क्यों न दुःख कराल कष्टों भरा उसका जीवन संसार रहे
चाहे समर भूमि में धधकता शोला हाहाकार रहे
युद्धाय कृत निश्चय: आदर्श सर माथे पर रखता है 
बद्री विशाल लाल की जय का, जय घोष करता है 
रेड लाईन यार्ड वर्दी धारी औरों से जो परे पहचान है 
भारतमाता की शान है जो, वो वीर गढ़वाली जवान है ।


ज़िंदगी छूटती जा रही हाथ से



द्वार  आशा  के सब बंद यों हो गये

निर्गत  काव्य  से  छंद ज्यों हो गये

मुँह के बल गिरती जाती रही कोशिशें

जो भी अच्छा किये दण्ड क्यों हो गये


बुरी औरतों



जानती हूँ…
जुल्म तो नहीं रुकेगा अब भी
लेकिन जब भी कोई 
चीख छटपटाएगी
अदालत का दरवाजा खड़काएगी
खड़ी हो जाएंगी दस उँगलियाँ 
तुरन्त…तंज कसे जाएंगे
तिरियाचरित्र का ताना सुना
संदेह की नजर से देखी जाएंगी
सारी दी गई गालियाँ फिर से 

दोहराई जाएंगी…




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आप सभी का आभार
आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में ।
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4 टिप्‍पणियां:

  1. द्वार आशा के सब बंद हो गए
    सुंदर अंक
    आभार
    सादर वंदन

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात ! मार्मिक भूमिका और पठनीय सूत्रों का चयन, आभार श्वेता जी !

    जवाब देंहटाएं
  3. श्वेता जी मेरी रचना का चयन करने के लिए हृदय से आभार…पठनीय अंक…सभी रचनाकारों को बधाई 🙏

    जवाब देंहटाएं

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