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शुक्रवार, 13 दिसंबर 2024

4336...हर.भटके राही को...

 शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।

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" ये जीवन आपने नहीं बनाया है, इसलिए जीवन को खत्म करने का हक भी आपको नहीं है – फिर चाहे वह आपका हो या किसी और का।"


कभी-कभी जिंदगी लोगों को ऐसी परिस्थितियों में ला कर खड़ी कर देती है कि उस वक्त उनको ऐसा महसूस हो सकता है कि फिलहाल वे जिस हाल में हैं उससे तो मर जाना ही बेहतर है।

   जब कोई शख़्स आत्महत्या करने के बारे में सोचने लगता है तो इस स्थिति को मनोचिकित्सक सुसाइडल आइडिएशन (आत्महत्या का ख्याल) कहते हैं. ज़रूरी नहीं है कि किसी एक वजह से ऐसा हो विशेषज्ञों की राय में जब व्यक्ति को किसी मुश्किल से निकलने का कोई रास्ता नहीं मिलता है, तो वो अपना जीवन ख़त्म करने के बारे में सोचता है। किंतु क्या आत्महत्या किसी भी प्रकार की समस्या से मुक्ति का साधन है? कृपया अपने आस-पास के लोगों  से सकारात्मक,मित्रवत और स्नेहपूर्वक बातें करते रहे, जीवन के प्रति सुखद दृष्टिकोण विकसित करें... शायद कोई दूसरा अतुल सुभाष बनने से हम बचा पाए।


हर एक आत्महत्या 

एक पूरी आत्मकथा होती है

मानसिक पीड़ा से ग्रस्त

अत्याचार से त्रस्त, 

व्यवस्था से निराश मन

जीवन की सुंदरता भूलकर

त्वरित न्याय की जिद में

समय की उपेक्षा कर

आत्महत्या को

अंतिम और अचूक

हथियार की तरह

इस्तेमाल करता है।



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आज की रचनाएँ-

अभिभूत


हे शिल्पी! 
शिलाखंड पर कब से बैठे हो
उठो! मुक्ति-मार्ग संशय से मिलता तो
हर भटके राही को मंज़िल की क्यों फ़िक्र हो!
करो प्रहार हथौड़ा हाथ है 


छूट गयी हर उलझन पीछे 

सम्मुख था एक गगन विशाल, 

जिससे झरती थी धाराएँ 

भिगो रही थीं तन और  भाल !





उसे अपना जीवन बहुत ही नीरस एवं महत्वहीन सा लगने लगा, जीने की चाह भी जैसे समाप्त सी होने लगी । मन की उलझनें उलझते-उलझते गिरहें बनी और वह भी उन्हीं गिरहों में कैद अब पूरी तरह से नकारात्मक मन के अधीनस्थ...। जिसके चलते अवसाद की सी स्थिति में वह अस्वस्थ सी रहने लगी। 




पत्थर और सितारे, हम पर अपना संगीत नहीं थोपते हैं  
फूल, खामोश हैं चीजें अपने पास कुछ रहस्य रखती हैं 
हमारी वजह से, जानवर इनकार कर देते हैं 
अपनी मासूमियत और कपट के मेल से, 
हवा के पास हमेशा उसकी सहज भंगिमाओं की शुद्धता है 
और, कौन सा गाना है जिसे  केवल मूक पक्षी जानते हैं  
जिसकी तरफ आपने फेंक दिया बिना मुड़ा पुलिंदा क्रिसमस की पूर्व संध्या पर 


कहाँ बुझे तन की तपन...(२)


उन दिनों स्वतंत्रता दिवस वाले विभत्स विभाजन ने उन्हें अत्यंत मर्माहत किया था। परन्तु कुछ ही दिनों बाद अपने जीविकोपार्जन के लिए मुम्बई (तत्कालीन बम्बई) आने के बाद उनके क्रांतिकारी विचारों वाले तेवर ने सामाजिक सरोकार वाली विचारधाराओं से सिक्त होकर एक ऐसे गीत का सृजन किया, कि उनके उस गीत को इंदिरा गाँधी वाली कांग्रेस सरकार की ओर से .. तत्कालीन तथाकथित स्वतन्त्र भारत में भी कुछ दिनों की पाबंदी झेलनी पड़ी थी।


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आप सभी का आभार
आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में ।
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7 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात।
    सुंदर पठनीय रचनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  2. वजनदार प्रस्तुति
    आभार
    वंदन

    जवाब देंहटाएं
  3. ध्यानाकर्षणः
    एक नया अध्याय जोड़ने की इच्छा है
    हम बंद ब्लॉगों की सूचना देना चाहते हैं
    शनिवार को प्रारंभ कर पूरे दिसंबर तक चलाएंगे
    हर शनिवार और रविवार को प्रकाशित करेंगें इस कार्य में हमारे सभी चर्चाकार शामिल हो कर सहयोग करेंगे.

    जवाब देंहटाएं
  4. जी ! .. सुप्रभातम् सह सादर नमन संग आभार आपका .. इस मंच पर हमारी बतकही को मौका देने के लिए .. जिसमें एक फ़िल्मी गीतकार के अंदर छुपे एक साहित्यकार की बहुमुखी विलक्षण प्रतिभाओं को भावी पीढ़ी को अवगत कराने के साथ-साथ समकक्ष पीढ़ी को पुनः याद दिलाने या फिर .. जो लोग फ़िल्मी दुनिया से जुड़े लोगों को एरा-गैरा नत्थू-खैरा समझते हैं, उनको भी उन सभी के प्रति सकारात्मक सोच पैदा करने का एक प्रयास भर है .. शायद ...
    आपकी भूमिका में ये भी जोड़ना मुनासिब लग रहा है, कि "अतुल सुभाष" जैसे लोगों की आत्महत्या एक बुज़दिली नहीं, वरन् एक हिम्मत से भरा कृत्य है और उसे आत्महत्या कहना भी उचित नहीं है, बल्कि वह एक आत्मबलिदान की श्रेणी में रखा जाना चाहिए। हम जैसे मुर्दों को जगाने वाला, व्यवस्था की सड़ाँध को उकेरने वाला, पैसे के लोभियों को सबक़ सिखलाने वाला आत्मबलिदान .. शायद ... और .. आत्मबलिदान कभी भी बस यूँ ही नहीं होता .. शायद ...
    और रही बात आपके निम्न कथन की, कि -
    " ये जीवन आपने नहीं बनाया है, इसलिए जीवन को खत्म करने का हक भी आपको नहीं है – फिर चाहे वह आपका हो या किसी और का।" - तो .. हम उन सभी चटोरों से पूछना चाहते हैं, कि हर दिन, हर पल, हम अपने स्वाद व अपनी तथाकथित सेहत के लिए "किसी और (निरीह प्राणियों) का जीवन क्यों ख़त्म करते हैं भला" ???

    जवाब देंहटाएं
  5. सुप्रभात ! आपने सही कहा है, आत्महत्या को किसी भी सूरत में सही नहीं ठहराया जा सकता, अपनी आवाज़ उठाने के लिए और भी तरीके हो सकते थे। बंद ब्लॉग्स को खोलना एक अच्छी शुरुआत है, आज के अंक में 'मन पाये विश्राम जहाँ' को शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार श्वेता जी !

    जवाब देंहटाएं
  6. उत्कृष्ट लिंकों से सजी लाजवाब प्रस्तुति
    मेरी रचना को भी स्थान देने हेतु हार्दिक धन्यवाद प्रिय श्वेता !
    समसामयिक चिंतनपरक भूमिका
    आत्महत्या किसी भी प्रकार की समस्या से मुक्ति का साधन नहीं है ...बिल्कुल सही कहा आपने प्रिय श्वेता !आत्महत्या त्वरित न्याय की जिद्द और सहनशक्ति की कमी ही है, समय हमेशा एक सा नहीं रहता परन्तु जब जिस पर गुजर रही होती है वही जानता है कि वह किस हद तक झेल रहा है ,और झेल पायेगा । बाकी सब भगवान की इच्छा !


    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

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