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मंगलवार, 10 दिसंबर 2024

4333.... क्या इतना ही जीवन है?

यूँ तो कोई भी फर्क नहीं पड़ता
मेरे यहाँ होने या न होने से... पर फिर भी पुनः
मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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बीज से वृक्ष 
तक का संघर्ष  
माटी की कोख से 
फूटना
पनपना,हरियाना,
फलना-फूलना
सूखना-झरना 
पतझड़ से मधुमास
सौंदर्य से जर्जरता के मध्य
स्पंदन से निर्जीवता के मध्य
सार्थकता से निर्रथकता के मध्य
प्रकृति हो या जीव
जग के महासमर में
प्रत्येक क्षण
परिस्थितियों के अधीन
जन्म से मृत्यु तक
जीवन के
मायाजाल में उलझी है
जिजीविषा...।
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आज की रचनाएँ

मध्य में क्या


जन्म तो संयोग है
मृत्यु एक वियोग है
क्या इतना ही जीवन है?
नहीं...मध्य मिलन का पर्याय है।

जन्म एक भोर है
मृत्यु निशा की ओर है
क्या इतना ही जीवन है?
नहीं...मध्य चिलचिलाती धूप है।



तू


तू चाहता है 

मैं तुझे पढ़ूँ 

इसीलिए तूने 

मेरे हाथों में किताबें थमा दीं 

तू चाहता है 

मैं तुझे लिखूँ 

इसीलिए तूने 

मेरे जीवन में चाहत भर दी 



आंदोलन का तेवर लेकर


शौर्य का टीका सजा ललाट पर 

गौरव गीता गाता विराट स्वर

प्रेम का परिचय देता पथ पर 

स्वागत करता हृदय मंच पर।

वे झुके नहीं थे ,नहीं थे कायर

देश धर्म पर शीश कटाकर

बलिदान हुये थे तेग बहादुर 

वे वीर रत्न है आज धरोहर।


मुक्तक



दर्दोगम को  दिल  में छुपाये रखती है
कई ख्वाब आँखों में सजाये रखती है


बहुत निकले मिरे अरमान...



तिवारी जी का जिंदगी के प्रति नजरिया एकदम साफ था। उनका शुरू से मानना रहा की अगर जीवन में आप अपना उद्देश्य जानते हैं तो सफलता जरूर हाथ लगेगी। तिवारी जी का उद्देश्य एकदम स्पष्ट था। जब तक पिता जी की नौकरी और फिर पेंशन आएगी तब तक तो उनके भरोसे चल लेंगे और जल्दी शादी करके पिता जी के गुजरने के पहले अपने बच्चों को इतना बड़ा कर लेंगे ताकी वो कमाने लगें तो बाकी की जिंदगी उनके भरोसे चल जाएगी।


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आप सभी का आभार।
आज के लिए इतना ही 
मिलते हैं अगले अंक में।

3 टिप्‍पणियां:

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