मिली जुली
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एक बार एक राजा ने विद्वान ज्योतिषियों और ज्योतिष प्रेमियों की सभा बुलाकर प्रश्न किया कि जो मेरी जन्म पत्रिका के अनुसार मेरा राजा बनने का योग था मैं राजा बना, किन्तु उसी घड़ी मुहूर्त में अनेक जातकों ने जन्म लिया होगा जो राजा नहीं बन सके क्यों?इसका क्या कारण है ?
राजा के इस प्रश्न से सब निरुत्तर हो गये। क्या जबाब दें कि एक ही घड़ी मुहूर्त में जन्म लेने पर भी सबके भाग्य अलग अलग क्यों हैं?सब सोच में पड़ गये। तभी एक वृद्ध खड़े हुये और बोले महाराज की जय हो !
आपके प्रश्न का उत्तर भला कौन दे सकता है , आप यहाँ से कुछ दूर घने जंगल में यदि जाएँ तो वहां पर आपको एक महात्मा मिलेंगे उनसे आपको उत्तर मिल सकता है।
राजा की जिज्ञासा बढ़ी और घोर जंगल में जाकर देखा कि एक महात्मा आग के ढेर के पास बैठ कर अंगार (गरमा गरम कोयला ) खाने में व्यस्त हैं। सहमे हुए राजा ने महात्मा से जैसे ही प्रश्न पूछा महात्मा ने क्रोधित होकर कहा - "तेरे प्रश्न का उत्तर देने के लिए मेरे पास समय नहीं है मैं भूख से पीड़ित हूँ। तेरे प्रश्न का उत्तर यहां से कुछ आगे पहाड़ियों के बीच एक और महात्मा हैं वे दे सकते हैं।
नभ के भाल पर
जब हुआ उदय
दूधिया चंद्रमा,
झरने लगी चाँदनी
शीतल उजियारी
छल-छल गगरी !
को जागरी ?
न भूले न भूले न भूले रे
मोहे आजी के देवता न भूले रे॥
आजी के देवता बिरवना बिराजें।
आजी के देवता फुलववा बिराजें
पाती-पाती देवी औ साखा-साखा देवा
तुलसी बियहवा न भूले रे॥
अपनी सफाई में इन्होंने हमेशा खजुराहो को सामने कर दिया परंतु ये नहीं बताया कि वे काम क्रीड़ा के आसन थे जो योग की श्रेणी में आते हैं।
बहरहाल किसी भी शख्सियत के दो चेहरे होते हैं, रतन टाटा के भी थे, हमें उन दोनों चेहरों को देखकर अपना आंकलन स्वयं करना चाहिए कि हम कहां तक इसे देश, संस्कार, और भारतीय सभ्यता के हित में देखते हैं।
तभी मुझे समझ आया कि सिंधी समाज व्यापार में इतना आगे क्यों है ! उन्होंने ही मुझे बताया कि बांसटाल में कृष्णा आटा चक्की पर यह आपको मिल जाएगा, पर अगली बार आप मुझसे ही लें ! प्रसंगवश बता दूँ कि दो-तीन साल में ही उनकी दूकान से मौसम पर चार से पांच बोरी मक्के का आटा बिकना शुरू हो गया था ! हम जब भी मिलते थे तो इस बात का जिक्र वे वहाँ उपस्थित सभी लोगों से किया करते थे कि शर्मा जी के कारण ये चीज मैंने रखनी शुरू की है ! इसीलिए मुझे तनिक गुमान सा है कि रायपुर में इस व्यंजन को लोकप्रिय बनाने में मेरा भी कुछ योगदान तो जरूर है !
मकई के आटे के साथ वहाँ सरसों के साग की उपलब्धि की बात भी कर ली जाए ! तो लगे हाथ बता दूँ कि छत्तीसगढ़ में इस तरह के पत्तेदार साग को भाजी कहते हैं, जैसे पालक भाजी, मेथी भाजी,चनाभाजी इत्यादि ! वहाँ के सबसे बड़े सब्जी बाजार, जिसे शास्त्री मार्किट (अंग्रजी भाषा के शब्द छत्तीसगढ़ी में बिलकुल दूध में पानी की तरह घुल-मिल गए हैं) में भी यह ''महोदया'' कभी-कभार ही मिलती थीं !पर शंकर नगर के पास टाटीबंध के इलाके में सुबह लगने वाले बाजार में, जहां छोटे खेतिहर अपना उत्पाद खुद ही ले कर आते थे, इनकी उपलब्धि बनी रहती थी !
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बस
सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंआभार
वंदन
सुंदर अंक!
जवाब देंहटाएंआज की टोकरी हरी-भरी ! देख तबीयत खुश हो गई ! इन सबके बीच जागते रहो की टेर भी संलग्न करने के लिए हार्दिक आभार एवं अभिनंदन। सभी रचनाकारों को धन्यवाद और साधुवाद !
जवाब देंहटाएंमोतियों से पिरोई सुंदर माला। एक मोती मेरी शामिल करने के लिए तहे दिल से आभार।
जवाब देंहटाएंविविध विधाओं से सजा बहुत सुंदर अंक। मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद दिग्विजय जी, मेरी ब्लॉगपोस्ट को इस शानदार संकलन में शामिल करने के लिए आभार, पूरा संकलन ही पढ़ा .....सभी एक से बढ़ कर एक पोस्ट हैं
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