नमस्कार
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
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शनिवार, 21 सितंबर 2024
4253 ..माँ! जितना और जैसा आप कहिएगा, सब हो जाएगा।
शुक्रवार, 20 सितंबर 2024
4252...नक्षत्र ने कहा...
जीवन का पुष्प खिले ,बीज ऐसा चाहिए।।
जैसे बीज बोये जाएँ, फल वैसा खाइए।।
नव ग्रहों का सार जाना ।
भू के अंतस को भी समझा,
व्योम का विस्तार जाना ।
अनगिनत महिमा गुरु की,
पा कृपा जीवन सँवारें ।
ज्ञान के भंडार गुरुवर,
पथ प्रदर्शक है हमारे ।
बिहारीपुरा के पश्चिम में छत्ताबाजार को पार करके 'ताज पुरा' है। यहाँ मुग़ल बेगम ताज का आवास था। ताज बेग़म ब्रजभाषा की कृष्ण भक्त कवयित्री हुई हैं। इन्होंने वल्लभाचार्य जी के द्वितीय पुत्र गो. विट्ठलनाथ जी से दीक्षा ली थी। इन्होंने श्रीकृष्ण की भक्ति से युक्त बहुतसे पद और छंद लिखे हैं। इनकी यह पंक्ति "हों तौ मुग़लानी हिंदुआनी बन रहों गी मैं" बहुत प्रसिद्ध हुई है। कहा जाता है, श्रीनाथजी के समक्ष होली की धमार गाते गाते ताज बेगम ने अपनी देह छोड़ी थी। महावन में कविवर रसखान की समाधि के निकट ही, एक स्थान पर इनकी भी समाधि बनी हुई है।
तुम्हारे अंदर दाखिल होते वक्त मुझे पता चला कि जीवन में प्लस और माइनस के अलावा भी एक चुम्बकीय क्षेत्र होता है जिसकी सघनता में दिशाबोध तय करना सबसे मुश्किल काम होता है तुमसे जुड़कर मैं समय का बोध भूल गई थी संयोगवश ऊर्जा का एक ऐसा परिपथ बना कि यात्रा युगबोध से मुक्त हो गई नि:सन्देह वो कुछ पल मेरे जीवन के सबसे अधिक चैतन्य क्षण है जिनमें मैं पूरी तरह होश में थी।
गुरुवार, 19 सितंबर 2024
4251...कुम्हलाए हुए ख़्वाब को जैसे रात ढले सींच गया कोई...
शीर्षक पंक्ति: आदरणीय शांतनु सान्याल जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पढ़िए आज की पाँच चुनिंदा रचनाएँ-
कुम्हलाए
हुए ख़्वाब
को जैसे
रात
ढले सींच गया कोई, अस्थिर
कमल पात पर देर तक
ठहरा हुआ था मेह
बूंद,
*****
*****
बुधवार, 18 सितंबर 2024
4250..छोटी खिड़की..
।।प्रातःवंदन।।
सुबह-सुबह मोबाइल पर यूँ ही उँगली फिरा रहा था कि स्क्रीन पर सहसा एक छोटी खिड़की खुल गई।‘मैं आपकी सहायिका हूँ।कहिए आपके लिए क्या कर सकती हूँ ?’ यह बात उसने बोली नहीं बल्कि मुझे लिखकर बताई।
✨️
अन्याय कब नहीं था ?
मुंह पर ताले कब नहीं थे ?
हादसों का रुप कब नहीं बदला गया ?!!!
तब तो किसी ने इतना ज्ञान नहीं दिखाया !
और आज ..
✨️
उस आदमी के नाम जिसने
अपनी खूंरेज़ियों
का जिक्र करते हुए कहा :
जब मैंने एक बुढ़िया को मारा
तो मुझे ऐसा लगा--
'मुझसे क़त्ल हो गया...
✨️
बहुत दिनों से विचार चल रहा था शिवा बाबा जाना है लेकिन दो घंटे का रास्ता गर्मी उमस के चलते मैं ही जाना टालती रही। शुक्रवार फिर मन बना लेकिन शनिवार लोक अदालत है इसलिए नहीं जा पाये फिर तय हुआ रविवार को चलेंगे।
आज सुबह निकलना तो जल्दी था लेकिन कुछ रविवार का आलस कुछ काम निपटा लेने का लालच दस साढ़े दस बज ही गये। अच्छा यह था कि आज धूप नहीं थी। खरगोन से
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह ' तृप्ति '...✍️
मंगलवार, 17 सितंबर 2024
4249...तुम मेरे गीतों को गाना
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
पूजने का अर्थ है विशेष सम्मान देना। भारतीय संस्कृति में दैनिक जीवन से जुड़ी मुख्य चीज़ों को, जो जीवन जीने के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती उसे पूजने की परंपरा है।
उसी क्रम में-
देवताओं के वास्तुकार और धरती के प्रथम शिल्पकार माने जाने वाले भगवान विश्वकर्मा की जयन्ती हर वर्ष 17 सितम्बर को बड़ी धूम-धाम से मुख्यतः कर्नाटक,असम,पश्चिमी बंगाल,बिहार,झारखंड, ओड़िसा और त्रिपुरा में मनायी जाती है।
कल-कारखानों एवं औद्योगिक क्षेत्रों में भगवान विश्वकर्मा की पूजा विशेष रुप से की जाती है जिसपर देश के लगभग सभी प्रदेशों की बहुत बड़ी आबादी जीवन-यापन के लिए निर्भर है।
कलियुग का एक नाम कलयुग यानि कल का युग भी है।
'कल' शब्द का एक मतलब यंत्र भी होता है यानि यंत्रों का युग सोचिए न हम सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक हजारों यंत्रों के सहारे ही तो चलते हैं, तो ऐसे में जो यंत्रों के देव माने गये हैं उनको हम भूल कैसे सकते हैं।
इन्हें गुनगुनाते सदा मुस्कुराना !
ये सुरभित सुमन तुमको सौंपे है मैंने
हृदय के सदन में, इनको सजाना !
ये जब सूख जाएँ, इन्हें भाव से तुम
स्मृतियों की गंगा में, साथी बहाना !
जब तक श्वासों में सरगम है,
तुम मेरे गीतों को गाना !
मनवीणा के, मौन स्वरों को
साथी, झंकृत करते जाना ।
आगा-पीछा सोच-सोच के
मन के हाल बुरे कर आये,
शगुन-अपशगुन के फेरे में
मोती से कई दिन गँवाये !
मन का क्या है, आज चाहता
कल उसको ख़ारिज कर देता,
छोड़ो इसकी चाहत, ख्वाहिश
हर पल का तुम रस पी लेना !
मधुसूदन हम जानते, सीधी-सी यह बात।
भटकें रास्ता नारियाँ, युद्ध बिगाड़े जात ।।
दानव फिर तांडव करें, जब मिट जाए धर्म।
जान बूझकर हम करें, कैसे ऐसा कर्म ।।
मिलते हैं अगले अंक में।
सोमवार, 16 सितंबर 2024
4248 ....एक तरफ़ है कमला नारी
रविवार, 15 सितंबर 2024
4247..शिरोरेखा सिसक पड़ी,"हाँ ! बच्चों भाषा का अनुशासन सब भूल चले हैं।"
नमस्कार