सादर नमस्कार
बुल्लेशाह की तू कहे काफ़ियाँ,
गाये वारिस की हीर जोगी |
दिल का ही था किस्सा कोई
जो राँझा बना फ़कीर जोगी |
इश्क़ के रस्ते खुदा तक पँहुचे,
क्या तूने वो पथ अपनाया जोगी ?
ये कोई दर्द था दुनिया का ,
या दुःख अपना गाया जोगी !!
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
सादर नमस्कार
सादर नमस्कार
नमस्कार
सादर अभिवादन
उलझी हुई “जिग्सॉ पजल” लगती है जिन्दगी
जब इन्सान अपनी समझदारी के फेर में
रिश्तों को सहूलियत अनुसार खर्च करता है ।
आजकल बच्चों में स्वेच्छाचारिता व् एकान्तप्रियता की भावना भी प्रबल रूप से घर करती जा रही है ! वे अपने पसंद के लोगों के अलावा अन्य किसीसे से बात करना मिलना जुलना बिलकुल पसंद नहीं करते ! कोई घर आ जाए तो कमरे से भी बाहर नहीं आते ! उन्हें मँहगे मँहगे वीडियो गेम्स और बाहर दोस्तों के साथ सैर सपाटा करने में ही आनंद आता है जो बिलकुल गलत है ! वे किसीसे आदरपूर्वक बात नहीं करते !
शीर्षक पंक्ति: आदरणीया डॉ.(सुश्री) शरद सिंह जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पढ़िए पाँच पसंदीदा रचनाएँ-
बड़े बुजुर्गों ने कहा
अड़ोसी-पड़ोसियों ने कहा
आते-जाते ने कहा
माँ नहीं रही
पर मैं कैसे मान लूँ तू नहीं रही
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शायरी | फ़लसफ़ा | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
*****
तुम चुप रहोगे,
तो सबको लगेगा
कि तुम्हारे पास
कहने को कुछ नहीं है,
सब समझेंगे
कि दूसरे ही सही हैं,
जो बोल रहे हैं।
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उड़ते पत्ते, पवन सुवासित
धरती को छू-छू के आये,
माटी की सुगंध लिए साथ
हर पादप शाखा सहलायें!
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एक शब्द वो आग भड़का दे
जीवन छीन
ले या फिर से
किसी का दिल धड़का दे
नीरव को कलरव में बदले,
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फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
बलि बलि जाइए ऐसे
भक्त और भगवान पर !
भक्त राजा बलि, दानी,
विनम्र एवं परोपकारी,
धर्मात्मा महत्वाकांक्षी,