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रविवार, 18 अगस्त 2024

4221...तुम झील का कीचड़ लाना, मैं सफेद कमल लाऊँगा।

 नमस्कार


अनुभवः-
जिसने भी कोई भी चर्चा मंच छोड़ा वो
नैपथ्य मे चला गया
मूल चर्चाकार के सिद्धांतो पर
कभी नहीं चल, अपने मन की चर्चा के लिंक
आरोपित करना ही सही चर्चा-मंच है, 
और वह सही चर्चाकार है

सीधे चलें रचनाओं की ओर



चले आने की आहट किये बिना ही
तुम्हारे सिरहाने बैठे बैठे
पूछ लेती हूँ, मे आई कम इन
और जब तुम कहते हो ना,
धत पगली और कितना अंदर आयेगी
तब माँ कमरे के बाहर तक आकर
लौट रही होती है...





गूँगे तूँ बोल! ज़रा मुख से
बहरे क्यूँ नहीं सुनता है?
करती अंतर्नाद स्वयं
तेरी भाषा क्यूँ?
लज्ज़ित है
वो पाश्चात्य से आई है,





तुम झील का कीचड़ लाना,
मैं सफेद कमल लाऊँगा।

जब भी मैं मुरझाऊँगा,
तुम कीचड़ खूब उछाल देना।

रंग मैं क्या बदलूँगा,
रण में मेरा एक ही रंग होगा।








मैं स्त्री थी,
ममता, सहृदयता का स्तम्भ !
अन्नपूर्णा, बेटी,बहन, पत्नी, मां !!
ओ पुरुष,
तुमने इस स्तंभ को गाली का दर्जा दिया,
और ... महिषासुर बन गए !
और दुनिया में
अपना प्रभुत्व दिखाने के लिए,
नवरात्रि मनाने लगे ।
अपनी कुदृष्टि को सुकून देने के लिए
कन्या पूजन करने लगे !





गाँव के खेत-खलियान तुम्हें हैं बुलाते
कभी खेले-कूदे अब क्यों हो भूले जाते
अपनी बारहखड़ी का स्कूल देखते जाना
बचपन के दिन की यादें साथ ले आना
भूले-बिसरे साथियों की सुध लेते जाना
राह ताक रही है तुम्हारी प्यारी बहना
अबकी बार राखी में जरुर घर आना


आज  बस
सादर

3 टिप्‍पणियां:

  1. मेरी रचना की पंक्ति को इस प्रस्तुति का शीर्षक मिलना मेरे लिए सम्मान की बात है। आभार।
    यहाँ प्रस्तुत सारी रचनाएँ असाधारण है।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट सम्मिलित करने हेतु आभार

    जवाब देंहटाएं

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