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शुक्रवार, 5 जुलाई 2024

4177...वक़्त तो लौटा दो यार...

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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अंधविश्वास में आकंठ डूबी भेड़े

चलती रहती हैं भेड़चाल।

बरगलाकर, भक्ति में डूबे

सरल भेड़ों को 

हाथ की सफाई के

भ्रमजाल फैलाता गड़रिया

चालाकी और धूर्तता की छड़ी से

हाँक लेता है अपने

बाड़े में,

झूठे अवतारवाद के

मायाजाल में उलझी

चमत्कार की आशा में

ख़ुश होती हैं भेड़ें

पाखंडी गड़रिया की 

चरण-वंदना में,

और गड़रिया उद्धारक बना

भेड़ों को मारकर

 खा जाता है...।

#श्वेता


आज की रचनाएँ-


प्रेम को नमी से बचाने


रास्ते में
प्रेम के कराहने की 
आवाज़ सुनी 
रुका 
दरवाजा खटखटाया 
प्रेम का गीत बाँचता रहा
जब तक 
प्रेम उठकर खड़ा नहीं हुआ 

उसे गले लगाया 
थपथपाया
और संग लेकर चल पड़ा

शहर की संकरी गलियों में


शब्दातीत चीख़ पीड़ाओं की



दुष्प्रभाव से मद्यपान के क्षरित हों या ना हों,
मानव वृक्क-हृदय .. सारे के सारे तन हमारे, 
मादकता में मदिरा की भले ही हो या ना हो,
बुद्धि शिथिल व्यसनी जन की, तो भी .. उससे
पहले .. सच्ची-मुच्ची विवेक तो भ्रष्ट होता है, जिन्हें
देख के सच्ची-मुच्ची .. बहुत ही कष्ट होता है .. बस यूँ ही ...


पिता की चिंता


बचपन में उनका गोद में दुलराना
साईकिल पर घुमाना
सिनेमा दिखाना, तारों से बतियाना
अब कुछ नहीं, बस यही चाहते वो
हमेशा उनकी आंखों के सामने रहूं।

मेरा झल्लाना समझते
चुपचाप देखते, कुछ न कहते वो
हम सबकी इच्छाओं,जरूरतों और सवालों को ले
बरसों तक मां सेतु बन पिसती रहीं





वक़्त तो लौटा दो यार...


हर साँस पे भले जाओ समा 
धड़कन की चाहे रोक दो रफ्तार
तुम रख लो जिस्म का कतरा कतरा 
पर रूह तो लौटा दो यार 
 
और लौटा तो मेरी मुफलिसी 
वो अकेलापन और सपने हजार 
तुम रख लो मेरी एक एक कौडी 
पर वो वक़्त तो लौटा दो यार 


प्रतीक्षालय एक विकल्प


मैं पुनः यही कोई आधे घंटे बाद कुछ खाने-पीने का सामान और चाय लेकर आई तब वहाँ का दृश्य  पहले से और अधिक रहस्यमई था। अब एक नया थानेदार अर्थात इनसे कहीं अधिक तेज-तर्रार महिला आ चुकी थी उसने जाली के पास कोने वाली एक पूरी बेंच पर कब्ज़ा कर रखा था और जो थोड़ी सीधी-साधी महिलाऐं थीं वो डरी-सहमी सी उससे दूर जाकर जमीन पर लेट गईं या बैठ गईं। वो लड्डू गोपाल वाला परिवार भी थोड़ा और डर गया क्योंकि उनके पास सामान अत्यधिक था जिसकी रखवाली आसान नहीं थी, क्योंकि वह तेजी से उठती कभी पंखा चलाती कभी अपने बेंच के आस-पास लेटी महिलाओं को उठा देती ,कभी जोर से चीखती "रस्ते में मत लेटो,माता रानी कहाँ से आएगी ? कैसे आएगी "कुछ अपशब्द भी बोल दे रही थी। 


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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में ।
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गुरुवार, 4 जुलाई 2024

4176...स्वप्न सुनहरे धोखा देकर,जा छिपते जग गलियारों में...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया अनीता सुधीर आख्या जी की रचना से।   

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में आज की पसंदीदा रचनाएँ-

सही साबित

जितना माद्दा है

तुम में,

अपना निर्णय

सही

साबित करने का।

*****

वीराने से रास्ते

उन वीरान से रास्तों की चुप्पी से

लगता है अनजाना सा भय भी

दिल के किसी कोने में

इतने शांत और निर्मल वातावरण में भी

कभी कभी दूर बैठे कौवे की

कांव कांव भी

डरा जाती है भीतर तक

वेदना

स्वप्न सुनहरे धोखा देकर,जा छिपते जग गलियारों में

तभी विवश हो बैठा मानव,भटक गया उर अंधियारों में

सुख  पाने की आस लगाए,लगा रहा पाखंडी चक्कर

भीडतंत्र का बन कर किस्सा,प्राण गवाए जयकारों में।।

*****

पटी दरारें

दाल को अच्छे से धो कर 6-8 घंटे के लिए भिगोकर मिक्सर में थोड़ा सा पानी डालकर पेस्ट बना लें इसको हाथों से अच्छे से 5 मिनट तक लगातार फैटे । कुछ घंटे ढँककर छोड़ दें जिससे मिश्रण थोड़ा हल्का हो जाए तब उसमें नमक मीठा सोडा डालकर अच्छे से मिक्स करें और हथेली में हल्का पानी लगाकर थोड़ा पेस्ट रखें उसमें भरावन भरें तथा गर्म तेल में मध्यम आँच पर छोटे-छोटे बड़े तल लें। हल्के गर्म पानी में दही बड़ों को डालते जाएं और आधे घंटे तक भिगोकर रखें। थोड़ा सा दबाकर एक बड़े बर्तन में दही बड़े रखें दही को छलनी में मैश करके छान लें इसमें दो तीन चम्मच पिसी हुई चीनी मिक्स करें और बड़ों के ऊपर डाल दें। इसके ऊपर मीठी चटनी हरी चटनीहरा धनिया, भुना जीरा पाउडर, चाट मसाला, नमक, लाल मिर्च, अनारदाना डालें और सबसे ऊपर जैम सजायें

जिस तरह पुष्पा अपने को तपाती रही बिना कोई मंजिल तय किए चलती रही…, बस! चलती रही, चलती रही! आमदनी की ज़रूरत ही क्या थी!

*****

जल ही जीवन है

हमारा भी वही हाल हो जाएगा अगर हमें दो दिन पानी न मिले ! इंसान खाने के बिना जीवित रह सकता है लेकिन पानी के बिना नहीं ! इसीलिये समझदारी इसीमें है कि हम पानी का इस्तेमाल किफायत से करें और यह कभी भी न भूलें कि जो पानी बेवजह बह रहा है उससे किसी प्यासे व्यक्ति की पानी की ज़रुरत पूरी हो सकती है ! 

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


बुधवार, 3 जुलाई 2024

4175..बदलने की उम्र बहुत लम्बी है..

 ।।उषा स्वस्ति।।

"चाहे जो भी फसल उगा ले,

तू जलधार बहाता चल।

जिसका भी घर चमक उठे,

तू मुक्त प्रकाश लुटाता चल।

रोक नहीं अपने अन्तर का

वेग किसी आशंका से,

मन में उठें भाव जो, उनको

गीत बना कर गाता चल..!!"

दिनकर

विशाल मनोभाव लिए पंक्तिया और हमारी छोटी सी बात में आज शामिल है..✍️

मेरे बदलने की उम्र बहुत लम्बी है

 मैं बदल गयी हूँ पहले से

हाँ मैं बदल गयी हूँ

खोटे सिक्के सी उछाले जाने पर

रोती नहीं हूँ

जश्न मनाती हूँ

फेंक दिये जाने की स्वतंत्रता ..

✨️


सुकून का आखिरी दिन


सुकून का आखिरी दिन

आप अपने जीवन से संतुष्ट थे | अपनी औकात से वाकिफ | क्या साध्य है क्या आसाध्य इससे परिचित | इच्छाएं तिलांजित किये हुए | 


फिर कोई मिल गया | चढ़ते सूरज के साथ नहीं मिला | तब मिला जब सूरज दोपहर के बाद ढलान पर था | वो मिला तो उसने बड़े प्यार से कहा "आप बुद्दू हो , एकदम पागल |आपको


✨️

अराजक महावत किसी हाथी को जब मिल जाता है

कहते हैं कि विपक्ष सत्ता पर अंकुश का काम करता है। अपने सकारात्मक व्यवहार से। किसी महावत की तरह। लेकिन अठारहवीं लोकसभा को सब से ज़्यादा विध्वंसक विपक्ष मिला है। 

✨️

कविताएं

 पीड़ा है बीड़ा है कैसी यह क्रीड़ा है

मन बावरा हो करता बस हुंकार

पास हो कि दूर हो तुम जरूर हो

कविताएं अकुलाई कर लो न प्यार..

✨️

अंतरिक्ष कार्यक्रम अच्छा है अगर .........

हमने 

बना दिया है 

कूड़ा घर 

इस दुनिया के पार 

सुदूर अंतरिक्ष को भी

कभी  ..

✨️

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह ' तृप्ति '..✍️

मंगलवार, 2 जुलाई 2024

4174....कैसे जीना इस जीवन.को

 मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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भोर की अधखुली पलकों में अलसाये/ज्यों ही खिड़कियों के परदे सरकाये
एक नम हवा के झोके ने दुलराया
झरोखे के बाहर फैले मनोरम दृश्य से/मन का फूल खिला जोर से मुस्काया
टिपटिपाती बारिश की मखमली बूँदे/झूमते पेड़ की धुली पत्तियों ने लुभाया
फुदककर नहाती किलकती चिड़िया/घटाओं ने नीले आसमां को छुपाया
भीगती प्रकृति की सुषमा में खोये/भाव विभोर मन लगे खूब हरषाया
हाथ में चाय की प्याली और अखबार/ देखनेे शहर का क्या समाचार आया
ओह चार दिन से हो रही बारिश ने/गली मुहल्ले में है आफत बरसाया
कल रात ही एक घर की दीवार ढही/जिसके नीचे मजदूर ने बेटा गँवाया
मौसमी बीमारियों से भरे अस्पताल/दवाखानों में भी खूब मुनाफा कमाया
सफाई के अभाव में बजबजाती नाली ने सारे  कचरे को सड़कों पर फैलाया
बदबू और सड़ांध से व्याकुल हुये लोग/चलती हवा में साँस लेना मुहाल हो आया
अभी तो नदियों के अधर भी न भींगे है/नाले का पानी घरों में घुसा कहर बरपाया
अखबार मोड़कर रखते हुये सोचने लगे/ऊफ्फ्फ इस बारिश ने कितनों को सताया
बोझिल हुआ मन दुर्दशा ज्ञात होते ही/है ये ख़ता किसकी रब ने सुधाजल बरसाया
कंकरीट बोता शहर विकास की राह पर/तालाब भरे नालियों पे ही आशियां लगाया
वज़ह चाहे कुछ भी हो सच बस इतना ही/बारिश ने शहर की खुशियों में ग्रहण लगाया
छत की खिड़कियों से दिखती है सुंदर बरखा
 सच की धरातल ने तो सारा खुमार उतराया।

     #श्वेता🍁

आज की रचनाएँ-


कोई कभी अनाथ हुआ कब 

वह पग-पग साथ निभाता है,  

कैसे जीना इस जीवन में 

ख़ुद आकर सदा सिखाता है !


 कदमों में गति वही भरे है

श्वासों में बनकर प्राण रहा,

नहीं कभी कोई भय व्यापे 

अंतर में दृढ़ विश्वास भरा !  





बढ़ती ही चली जाती है ये बोझ की माफ़िक ।
इस ज़िन्दगी की यार थकन कम नहीं होती ।।

चाहत हो अगर दिल मे मुलाकात की साहब ।
साँसों की शबे वस्ल तपन कम नहीं होती ।।

कह दीजिये जो मन में हो हर बात सरे बज़्म ।
ख़ामोशियों से मन की घुटन कम नहीं होती ।।




पंख दिये जिनको तूने, उड़ने की नसीहत देते वे ।
ममता की घनेरी छाँव दिखी, क्षमता तेरी ज्ञात नहीं ।

पर तू अपनी कोशिश से, अपना लोहा मनवायेगी ।
अब जागी है तो भोर तेरी, दिन बाकी है अब रात नहीं।




ज़ख्मों की कसक हो अपनी जरूरी तो नहीं,
दर्द किसी का,अश्क हों अपने क्या कहिए?

कुछ पन्ने अतीत के खुलते ही छलक गए ,
क्या कहाँ चुभा निकले आँसू क्या कहिए?



यह सोचने की बात है कि इस तरह की अनर्गल टिप्पणियों की निंदा या भर्त्सना होने के बावजूद लोग क्यों जोखिम मोल लेते हैं। समझ में तो यही आता है कि यह सब सोची समझी राजनीति के तहत ही खेला गया खेल होता है। इस खेल में ना कोई किसी का स्थाई दोस्त होता है ना हीं दुश्मन। सिर्फ और सिर्फ अपने भले के लिए यह खेल खेला जाता है। इसके साथ ही यह भी सच है कि ऐसे लोगों में गहराई नहीं होती, अपने काम की पूरी समझ नहीं होती इन्हीं कमजोरियों को छुपाने के लिए ये अमर्यादित व्यवहार करते हैं। इसका साक्ष्य तो सारा देश और जनता समय-समय पर देखती ही रही है !


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आज के लिए बस इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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सोमवार, 1 जुलाई 2024

4173 ...जहाँ से चले थे बुद्ध, वहीं लौट आये हैं

 सादर अभिवादन

स्वागत अभिनंदन
माह जुलाई आपका
स्कूल का व्यापार चालू
आपको तैयारियों में व्यस्त कर दिया
रैन कोट, छाता का बंदोबस्त
करना जो है ,,,


इसी माह में वर्षगांठ भी है
रथयात्रा जो है ..आप जरूर आइएगा
रविवार 07 जुलाई  2024

रचनाएँ कुछ मिली जुली ....




अगर बात नीट एग्जाम की तैयारी की करें, तो आकाश इंस्टीट्यूट, एलन और विद्या मंदिर क्लासेस जैसे कोचिंग सेंटर की फीस 1.25 लाख रुपए से 4 लाख रुपए के बीच है. ये कोचिंग सेंटर की लोकेशन, उसकी फैकल्टी इत्यादि पर डिपेंड करती है.

अब बात करें एमबीबीएस की फीस की, तो सरकारी कॉलेज में ये फीस 5,000 रुपए से 1.5 लाख रुपए प्रति वर्ष तक होती है. जबकि प्राइवेट कॉलेज में 12 लाख से 25 लाख रुपए तक. इस तरह किसी सरकारी कॉलेज से डॉक्टर बनने की न्यूनतम लागत 20,000 रुपए की ट्यूशन फीस है, तो प्राइवेट कॉलेज में यही खर्च न्यूनतम 50 लाख रुपए है.




जहाँ  से चले थे बुद्ध, वहीं लौट आये हैं
पाया नहीं कुछ नवीन, व्यर्थ त्याग दिये हैं

जीवन का देवता, भेंट यही माँगता है
उतार दे हर बोझ जो, संग सदा चले है





समाज के ठेकेदार बनकर औरों को दबाने लगे
गुनेहगार होकर भी औरों पर लांछन लगाने लगे !

अपनी छोड़ किस हक़ से ये फिक्रमंद होने लगे
भला तो किया नहीं कभी बदनाम बहुत करने लगे !





सुनो,
जब पत्थर बरसते हैं गलियों में,
आग लगाई जाती है बस्तियों में,
जब सड़कों का रंग लाल
और आसमान का काला हो जाता है,
जब गीत-संगीत की जगह
गूँजते हैं ज़हरीले नारे,
बच्चों की किलकारियों की जगह
गूँजती है उनके रोने की आवाज़.




उठता तो ज़रूर है
एक पत्थर कहीं से
आईना चटखने से पहले





पक्षी की टक-टक से,
मेरे मन का द्वार खुल गया
आप भी एक पेड़ तो लगाओगे
अपने लिए या अपनों के लिए
कहीं सार्वजनिक स्थानों
या फिर आंगन में या फिर
किसी के दिल में ही सही..




माना की इस तेज रफ्तार जीवन की
शैली में यूज़ ऐंड थ्रो का चलन बढ़ रहा है
और इस, चलन के चलते हमने
धरा की गर्भ को तो विषैला बना ही दिया है
पर रिश्तों में हम इस चलन को लाकर
मनुष्य के हृदय में बसे विश्वास , संवेदना,
और प्रेम जैसे खुबसूरत भावों को भी
नष्ट करके ज़हर भर रहे हैं


आज बस
कल मिलिएगा सखी से
सादर वंदन