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शुक्रवार, 19 जुलाई 2024

4191...सूरज की चमकीली बाँहें..

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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एक बार फिर...
निर्दोष सपूतों के
वीरगति पर आक्रोशित मन
पूछता है स्वयं से प्रश्न 
गगन भेदी जयघोष,
चंद सहानुभूति 
ये रटे-रटाये जुमले 
मात्र औपचारिकता-सी
क्यों प्रतीत हो रही है? 
क्या दैनिक समाचारों का
ब्रेकिंग न्यूज़ बनना  
मुख्य पृष्ठ के किसी कोने में
स्थान पाना 
और नये अपडेट के साथ
भुला दिया जाना ही
शहीदों की नियति है?
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सोचती हूँ

एक शहीद की अंतिम इच्छा

क्या होगी?


#श्वेता
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आज की रचनाएँ-


जीवन क्या है !
उसे उसी वक्त 
ऐसे वैसे दिखाने की क्या जरूरत है !
जो दर्द के गहरे समंदर में होता है, 
उसके आगे तो यूं भी एक एक सच 
हाहाकार करता गुजरता है !
कुछ नहीं दे सकते 
तब कम से कम इतना विश्वास ही दे दो


सावन मनभावन


ओस कणों के संग सुनहली,
उर्मिल देखो क्रीड़ा करती।
सूरज की चमकीली बाँहें,
वसुधा आँगन आभा भरती।
हवा चली है, मन मुकुलित सा
मचल रहा सब कुछ पाने को।


गिरह


नथुनों से उड़ती आँधी
दिमाग़ के कई-कई किंवाड़ तोड़कर 
वर्तमान को गढ़ती  
सपनों पर पड़े निशान ही नहीं 

तुम्हारे वर्चस्व की दौड़ पढ़ाती है 


मुजरिम, वकील जज हम्हीं



मन की कचहरी में मुजरिम वकील जज भी हमीं 
पर सत्य कहने का बता तूं हौसला कहा से लाऊं ।।

 किस यकीं पर उसे अपना कहूं.....
 रोशनी आंखों से छीन ली मेरी जिसने.....।



ज्ञान मीमांसा :अनरसा



 “चलो मान लिया कि तलाक़ का प्रस्ताव तुमने नहीं रखा लेकिन पत्नी को खर्च करने के लिए रुपया नहीं देना पड़े इसलिए तुमने नौकरी से सेवानिवृत्ति ही ले लिया…!”

“हाँ! ना रहेगा बाँस और ना बज सकेगी बाँसुरी..!”

“आजकल जितने महीने शादी के चोंचलें चलते हैं उतने महीने शादी ही नहीं चलती है…!”


चींटी के पर निकलना


हाँ बेटा ! मेहनत भी तभी तो की ना तूने, जब तेरी मम्मी ने तुझे जैसे- तैसे करके यहाँ तक पढ़ाया"। 

"कौन नहीं पढ़ाता आंटी ? आप भी तो पढ़ा ही रहे हो न अपने बच्चों को"।

"माफ करना बेटा ! गलती हो गई मुझसे । बधाई तेरी माँ को नहीं, बस तुझे ही बनती है ।  तेरी माँ ने तो किया ही क्या है , है न ! बेचारी खाँमखाँ मेहनत-मजदूरी करके हड्डी तोड़ती रही अपनी" ।

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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में ।
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9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर संकलन।
    स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. एक शहीद की अंतिम इच्छा
    मेरे देश की स्वतंत्रता अक्षुण रहे
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर अंक ,हमारी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभारी हूं।

    जवाब देंहटाएं
  4. शहीदों के लिए तो तिरंगा ही काफी हैऔर उनके परिवारों को मिलती हैं न दो दिन की हमदर्दी....फिर किसे पड़ी है उनकी...
    उत्कृष्ट रचनाओं के लिंक्स से सजी लाजवाब प्रस्तुति ।मेरी रचना को भी स्थान देने हेतु सस्नेह आभार एवं धन्यवाद प्रिय श्वेता !

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत दिनों या फिर महीनों बाद ब्लाग पर कुछ पोस्ट किया और मैं अभिभूत हूँ उसे स्नेही साथियों ने हाथों-हाथ लिया, और प्रिय श्वेता की विशेष आभारी हूँ की उन्होंने बहुत स्नेह से मेरी पंक्ति को शीर्षक पर सजाया।
    अभी तक किसी पोस्ट पर नहीं जा पाई शीघ्र ही सभी को पढ़कर फिर प्रतिक्रिया देती हूँ।
    श्वेता आपका प्रस्तुति देने का अंदाज बहुत मोहक है।
    हृदय से आभार आपका श्वेता एवम् पूरे पाँचलिंको का आनंद का मेरी रचना को स्नेह स्थान देने के लिए।
    सादर सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं

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