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बुधवार, 10 जुलाई 2024

4182..क्या क्या याद रखू..

 ।।प्रातःवंदन।।

"मूढ़, मुझ से बूँदें मत माँग!
मैं वारिधि हूँ, अतल रहस्यों का दानी अभिमानी
पूछ न मेरी इस व्यापकता से चुल्लू-भर पानी!
तुझे माँगना ही है तो ये ओछी प्यासें त्याग !"
अज्ञेय
यहाँ तो बारिश की आसार ही नजर आती है...तभी तो इन पंक्तियों से काम चला रहे..✍️

रैन भई चहुं ओर...

बदलेगी सूरत थोड़ा उपकार कर दो।

गहरे जख्मों का नाम यार कर दो। 

भ्र्ष्टाचार का नाम सदाचार रखना

सवाल का नाम अत्याचार कर दो।

✨️

क्या याद रखूं?

याद करना या भूलना अथवा ‘मन’ में ‘रखना’ (जिसे सामान्यतः याद रखना कहते हैं), मानसिक नैसर्गिक सहजात क्रियाएं है। मस्तिष्क एक पूर्वनिधारित स्वमेव प्रक्रिया (आटो इन्स्टाल्ड प्रोग्राम) के अनुसार याद करता है या नहीं करता। इसके दो विभाग हैं-चेतन और अवचेतन। दोनों बैठकर तय करते हैं कि कितना चेतन में रहेगा और कितना अचेतन में। चेतन बहिर्मुखी है और अवचेतन अंतमुर्खी है। इसलिए शरीफ़ दिखाई देनेवाले व्यक्ति को देखकर लोग कहते है- दिखता तो शरीफ़ है, मगर किसके मन में क्या है, कौन कह सकता है। यह जो आरोपित मन है, यह..

✨️

चाँद पर माहौल नहीं है 

चाँद से टूटा तार मेरा

दो बेडरूम का घर है काफ़ी 

बसा जहां संसार मेरा

हवा नहीं है, जीव नहीं है

मानवता की नींव नहीं है

✨️

दांते -दा डिवीन कॉमेडी 

इस नश्वर जीवन के मध्य में,

मैंने खुद को एक उदास जंगल में पाया,

भटककर

सीधे रास्ते से भटक गया

और यह बताना भी आसान नहीं था..

✨️

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह ' तृप्ति '..✍️

(साझा करने की सूचना उपर्युक्त सभी रचनाओ को भेजी जाती ..शायद तकनीक कारण से दिखती नहीं)

5 टिप्‍पणियां:

  1. किसके मन में क्या है,
    कौन कह सकता है।
    शानदार अंक
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही सुन्दर संकलन और बेहतरीन प्रस्तुति सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. बढ़िया प्रस्तुति पम्मी जी! आज अपने मंच पर आकर बड़ा सुकून मिला! सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ! 🙏🌺🌺🌹

    जवाब देंहटाएं

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