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मंगलवार, 4 जून 2024

4147....मौसम में फिर साथ सफर हो...

मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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बदलते मौसम की सुगबुगाहट
तपती किरणों की चिलचिलाहट

सूखने लगे बाग के फूल सारे
कटते पेड़ों में मची कुलबुलाहट

गिरगिट सा रंग बदले मौसम
प्राणियों में होने लगी घबराहट

सूखते सोते जलाशयों में,
कंठों में बूँदों की अकुलाहट

पार्कों की जगह मॉल बन रहे
प्रकृति भी देख रही बदलाहट

कुदरत से खिलवाड दोस्तोंं
जीवन में मौत की बुलाहट

संतुलित रखो पर्यावरण को,
वरना सुनो विनाश की मौन आहट..।।
-श्वेता
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आज की रचनाएँ-

करेंगे कवि लेखक वंदना सर्जना
इतिहास नया मिल कर बनायेंगे
सिक्के नोटों पुरानी फोटों से
धोती लाठी चश्मों को मिटवायेंगे

धोती लाठी चश्मों को मिटवायेंगे
लंका का सोना वापस लायेंगे
रावण अट्टहास करेगा ‘उलूक’
पण्डे घर घर झंडे डंडे लहरायेंगे


अरण्य, पुनः बिछाई जाएगी शतरंज की बिसात,
बढ़ते हुए जुलूस में फिर मोहरें तलाशे जाएंगे,
क्रमशः आतिशबाज़ी में दब के रह जाएंगे 
सभी ख़्वाब, सभी अरमान, कुछ भी
नहीं बदलेगा, वही सियासत के
नाख़ून वही कराहता हुआ
जिस्म ओ जान, जीवन

इंद्रधनुष की 
आभा नीले 
आसमान में निखरी,
चलो बैठकर 
पढ़ें लोक में 
प्रेम कथाएँ बिखरी,
रिमझिम 
बूंदों वाले 
मौसम में फिर साथ सफ़र हो.


इस मीठी, मलाईदार मिठाई का एक चम्मच आपको पुरानी यादों की गलियों में ले जाएगा, आपके लापरवाह बचपन के दिनों में। स्वतंत्रता-पूर्व काल में दूध पिठी एक लोकप्रिय मिठाई थी। माताओं के लिए अपने विस्तारित परिवारों को खिलाने के लिए बड़ी मात्रा में दूध आधारित व्यंजन पकाना आम बात थी, जहाँ अकेले बच्चे आसानी से पूरी फुटबॉल टीम पर भारी पड़ सकते थे।

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आज के लिए बस इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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4 टिप्‍पणियां:

  1. कुदरत से खिलवाड दोस्तोंं
    जीवन में मौत की बुलाहट

    संतुलित रखो पर्यावरण को,
    वरना सुनो विनाश की मौन आहट..।।
    बहुत खूब
    शानदार अंक
    सादर वंदन

    जवाब देंहटाएं
  2. हार्दिक आभार आपका. सभी लिंक्स अच्छे. सादर अभिवादन

    जवाब देंहटाएं

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