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मंगलवार, 21 मई 2024

4133...चट्टानों में जो सोया

मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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आज की रचनाएँ-



मैदान में गर्मी
पहाड़ में गर्मी
रेगिस्तान में गर्मी
मैदान में एसी
पहाड़ों में भी एसी
रेगिस्तान में एसी




अली री जाती राधारानी, चली बुझा के दिपदानी।
लगे यूं जैसे अरण्यानी। पकड़ी न जाय अज्ञानी ।।

देखे ना अपना पराया , बन कर ज्यूं प्रतिछाया।
हारी मन हारी काया, ये कैसी कान्हा की माया।।


सोचने से नहीं मिलता यह 

न ही स्थानांतरित हो सकता है

सदैव प्रतीक्षारत है

वृक्ष

, पशु, यहाँ तक निर्जीव भी 

ओतप्रोत हैं इससे

चट्टानों में जो सोया है

थोड़ा सा जगा है पेड़ों में 

पशुओं में कुछ अधिक 

और खिल गया है पूरा मानव में 



डाइटिंग एसन कीजिये, वज़न घट नहीं पाय,
आप भी ना भूखा रहे, रात नींद आ जाय। 

झूठ की मैराथन में, जो अव्वल आ जाय,
आज कल राजनीति में, वो नेता कहलाय।

नेता जी दल बदल के, फिर सी एम बन जाय, 
सज्जन सोशल साइट्स पे, बेबात भिड़त जाय। 


चंद्रलोचन चुराकर चले चित्त को
संग मेघों के अश्व तुनककर चले;
भंग करने चले नींद सूरज के वे
हस्त-कंगन दमक दामिनी बन चले।

शर्व की सौंह ऋतु अनमनी सी पड़ी
जागकर वह मगर नौजवाँ हो गयी;
चंद्र के चंचु चंपक-चपल चंचला
शून्यता में न जाने कहाँ खो गई।

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आज के लिए बस इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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चटट

4 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    आज प्रस्तुति नहीं दिखी तो मैं बना रही थी
    आभार सखी
    सादर वंदन

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात ! अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस पर चाय के शौकीनों को शुभकामनाएँ ! सुंदर प्रस्तुतीकरण, 'मन पाये विश्राम जहां' को स्थान देने हेतु आभार यशोदा जी !

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर अंक! सभी मेरे जैसे चाय प्रेमियों को शुभकामनाएँ🌷

    जवाब देंहटाएं

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