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शुक्रवार, 10 मई 2024

4122...सम्मान की भूख

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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लिखना अर्थपूर्ण कब है?
और निरर्थक कब?
आपके दृष्टिकोण से
जो स्तुतियाँ लिखी गयी हैं
किसी और के दृष्टिकोण से
सम्मान गीत हैं...
शब्दों के विषबुझे तीर 
फैल जाते हैं 
सूक्ष्म शिराओं में
अंतर्मन भी कहाँ सुरक्षित रह पाता है?
ज़हरीली लताओं के जाल में
उलझकर दम तोड़ देता है
आपका विरोध लिखना
जो किसी के मूक समर्थन में है...।

आज की रचनाएँ-



बहुत जगह सम्मानित होने के बाद
मुझे हुआ यह बोध
सम्मान की भूख होती है सबसे कारुणिक
अपमान की गहरी स्मृति की तरह
एकदिन हम इस भूख के बन जाते हैं दास


इश्क़ का ये दरख़्त 
सूखता जा रहा है,
अरमानों के पत्ते,
पीले से पड़ने लगे हैं,
कुछ सूख रहें हैं,
कुछ सूख कर गिर गए हैं।





सुबह शाम हर पल फिकर में उन्हीं की
अतीती सफर याद करने लगे हैं ।

सफलता से उनकी खुश तो बहुत हैं
मगर दूरियों से मचलने लगे हैं ।

राहें सुगम हों जीवन सफर की
दुआएं सुबह शाम करने लगे हैं ।



किसीआँख में आंसू सा मचल रहा हैं ,
दिल में एक ख्वाब सा पल रहा हैं ...

तुमने चेहरे से जो नकाब उठाया हैं ,
देखो मौसम कितना बदल रहा हैं ...




शिशु और परिवार के मध्य प्रेम का आदान-प्रदान उस क्षण से पहले से ही होने लगता है जब बालक बोलना आरम्भ करता है. अभी उसमें अहंकार का जन्म नहीं हुआ है, राग-द्वेष से वह मुक्त है, सहज ही प्रेम उसके अस्तित्त्व से प्रवाहित होता है. बड़े होने के बाद जब प्रेम का स्रोत विचारों, मान्यताओं, धारणाओं के पीछे दब जाता है, तब प्रेम जताने के लिये शब्दों की आवश्यकता पडती है।

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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में ।
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4 टिप्‍पणियां:

  1. अंतर्मन भी कहाँ सुरक्षित रह पाता है?
    अप्रतिम ..
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. सारगर्भित भावाभिव्यक्ति की भूमिका साथ लाजवाब प्रस्तुति.. सभी लिंक्स बेहद उम्दा एवं उत्कृष्ट ...मेरी रचना को स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं सस्नेह आभार प्रिय श्वेता !

    जवाब देंहटाएं
  3. हमको यहां मंच मिलता है इसलिए बहुत आभार और आपको साधुवाद

    जवाब देंहटाएं

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