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शुक्रवार, 22 मार्च 2024

4073....यदि आपके लिए पर्याप्त रोशनी नहीं है...

 शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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सोचती हूँ...
श्वेत पन्नों को काले रंगना छोड़
फेंक कर कलम थामनी होगी मशाल
जलानी होगी आस की आग 
जिसके प्रकाश में
मिटा सकूँ नाउम्मीदी और
कुरीतियों के अंधकार
काट सकूँ बेड़ियाँ 
साम्प्रदायिकता की साँकल में
जकड़ी असहाय समाज की
लौटा पाऊँ मुस्कान
रोते-बिलखते बचपन को
काश!मैं ला पाऊँ सूरज को 
खींचकर आसमां से
और भर सकूँ मुट्ठीभर उजाला
धरा के किसी स्याह कोने में।
किन्तु यदि नहीं हूँ, मैं ही आपके लिए पर्याप्त 
फिर प्रश्न उठता है कि मैं हूँ ही क्यों ?
सिवाय इसके कि मैं आपको देखता रहूँगा 
अनवरत एकटक 
मिट  जाने तक । 


हो सके तो समभाव रहें 


ऐसे ही कुछ किनारे साथ-साथ चले, 
पर साथ नहीं चले ! 
धारा के मध्य आकर साथ निभाना 
शायद मुश्किल था उनके लिए । 
बस किनारे किनारे ही बराबर में दौड़ते रहे,
देख-देखकर हँसते-मुस्कराते ।
हाँ , कहीं उलझनों में उलझा देख,
वे भी किनारों पर ठीक सामने ही कुछ ठहरे,
 सुलझने की तरकीबें सुझाकर अलविदा बोल
 वापस हो लिए अपने ठहराव की ओर । 
आखिर कब तक साथ चलते !


निखर गये हैं रूप सलोने  

अंतर ज्यों आश्वस्त हुए हैं, 

होली के आने से देखो 

आज ह्रदय मदमस्त हुए हैं !


सभी नज़र आते हैं अपने 

आज एक भी नहीं पराया, 

होली के रंगों में जाने 

छुपा कौन सा राज अनोखा !


जिसे कहते हैं कविता



ठंडी छाछ में, 
गन्ने के गुङ में, 
माखन-मिसरी में,
मधुर गान में, 
मुरली की तान में, 
मृग की कस्तूरी में, 
फूलों के पराग में, 
माँ की लोरी में, 



दो पाटों के बीच


अंकिता के लिये नौकरी आवश्यक नहीं ,आत्मनिर्भर होने के एहसास के लिये है .(चाहें तो पीयूष के शानदार पैकेज में बहुत आराम के साथ जीवन निर्वाह हो सकता है) . वह भी कितने आराम से ...बिस्तर छोड़ने से लेकर ऑफिस जाने तक ,चाय के साथ न्यूज देखने और खुद की तैयारी के अलावा कोई काम नहीं होता अंकिता के लिये . सफाई और खाना बनाने वाली सहायिकाओं को जरूरी निर्देश देना ..चीजों को व्यवस्थित करना ,वाशिंग मशीन से कपड़े निकालकर फैलाना ..नीटू को तैयारकर खिला पिला ..प्लेग्रुप में छोड़कर आना और वहाँ से लेकर आना ..बिग बास्केट से आए सामान को यथास्थान रखना आदि सारे काम खुद विमला ने सम्हाल लिये हैं . 



आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में ।
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6 टिप्‍पणियां:

  1. होली के आने से देखो
    आज हृदय मदमस्त हुए हैं
    शानदार अंक
    आभार...
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. आस की मशाल जलाये रखिये,
    चेहरों की मुस्कान बनाये रखिए,
    सुंदर प्रस्तुति,
    आभार श्वेता जी !

    जवाब देंहटाएं
  3. अच्छी कविताएं, कहानी भी अच्छी है । मेरी कविता को स्थान देने के लिए शुक्रिया ।

    जवाब देंहटाएं
  4. काश!मैं ला पाऊँ सूरज को
    खींचकर आसमां से
    और भर सकूँ मुट्ठीभर उजाला
    धरा के किसी स्याह कोने में।
    सकारात्मक एवं कल्याणकारी भावों से सजी भूमिका एवं उत्कृष्ट लिंकों से सजी लाजवाब प्रस्तुति..मेरी रचना को भी स्थान देने हेतु तहेदिल से आभार एवं धन्यवाद प्रिय श्वेता ।

    जवाब देंहटाएं
  5. सभी लिंक सुन्दर हैं। धन्यवाद श्वेता।

    जवाब देंहटाएं

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