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मंगलवार, 12 मार्च 2024

4063....मुमकिन नहीं अब लौटना उसका...

मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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बादलों के गाँव में

होने लगी सुगबुगाहट

सूरज ने ली अंगड़ाई,

फगुनहट के नेह ताप से

आरक्त टेसु,

कूहू की पुकार से

व्याकुल,

सुकुमार सरसों की

फूटती कलियों पर मुग्ध

खिलखिलाई चटकीली धूप।

मधुमास शिराओं में 

महसूस करती

दिगंबर प्रकृति

नरम,स्निग्ध,

मूँगिया ओढ़नी पहनकर

लजाती,इतराती है। #श्वेता


आइये अब आज की रचनाओं का आस्वादन करें-




किवदंती पिया वैजयन्ती खन खनाती झांझर कंगन l
अकल्पित रूह रोम सँवर भँवर आह्लादित दामन l।

रूद्राक्ष ताबीज साँझ क्षितिज काया कामिनी l
विभोर साधना मन अनुरागी आँचल धुन ताल्लीन l




ऐसा सुना है कि इन पौधों की पांच पत्तियाँ या फूल चबाकर रोज सुबह खाली पेट खाने से डायबिटीज की बीमारी समूल नष्ट हो जाती है और मरीज को उस बीमारी से सर्वदा के लिए मुक्ति मिल जाती है। मैं भी डायाबेटिक हूँपर यह बात और है कि मैंने एक दिन भी इसे नहीं खाया। मैंने एक दो बार सफेद फूल के सदाबहार का पौधा लगाया पर बचा नहीं पाया। 






चुप कर सरला ! टोकने की आदत ना छोड़ी तूने ! अब पूछ ही बैठी है तो बताए देती हूँ , हाँ ! काट छाँट लिया है मैंने ये बूढ़ा नीम । पर इसे उगटाने के लिए नहीं , और अच्छे से हरियाने के लिए ।  क्यों ना फरक पड़ेगा इसके ना होने से ? अरे ! बड़ा फरक पड़ेगा!  तुझे नहीं तो ना सही , मुझे पड़ेगा और इसे तो पड़ेगा ही। होंगे बतेरे नये नीम उगे हुए , पर इसके लिए थोड़े ना है ।  सब इसी से हैं पर इसके लिए कोई नहीं । कड़वा सा मुँह बनाकर  आगे बोली,  "जिसको इसकी फिकर नहीं ये भी अब उनकी फिकर नहीं करेगा । देख लेना फिर से हरियायेगा ये"।

रातभर जगती अखिया

आंसुओं का बाँध है इनमें,
रो नहीं सकती अखियाँ।
मुमकिन नहीं अब लौटना उसका,
व्यर्थ भाव बिलखती अखियाँ,

खाना खुद नहीं बनाते हैं, रेस्टोरेंट का जंक फूड खाते हैं,
इसीलिए यहां स्टोर्स विटामिंस की  गोलियों से भरे पाते हैं।

ना कोई बैक पॉकेट में कंघी रखता है ना जेब में रूमाल,
ना घर में बाल बच्चे होते हैं, ना सिर पर बचे होते हैं बाल। 

बच्चा कोई पैदा नहीं करता, पर घर में कुत्ता सब पालते हैं,
बेघर इंसान भी सामान के साथ, पैट जरूर संभालते हैं। 

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आज के लिए बस इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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6 टिप्‍पणियां:

  1. बादलों के गाँव में
    होने लगी सुगबुगाहट
    सूरज ने ली अंगड़ाई,
    फगुनहट के नेह ताप से
    सुंदर अंक
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. शामिल करने के लिए आपका आभार। एसचाचा प्रयास है, कृपया जारी रखें।

    जवाब देंहटाएं
  3. उत्कृष्ट लिंकों से सजी लाजवाब प्रस्तुति ।
    मेरी रचना सम्मिलित करने हेतु दिल से धन्यवाद प्रिय श्वेता !

    मधुमास शिराओं में
    महसूस करती
    दिगंबर प्रकृति
    नरम,स्निग्ध,
    मूँगिया ओढ़नी पहनकर
    लजाती,इतराती है।
    अद्भुत !👌👌

    जवाब देंहटाएं
  4. सुंदर रचनाओं की लाजवाब प्रस्तुति।
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं

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