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शनिवार, 2 मार्च 2024

4053 ...अपनेपन की रोशनी भी कम नहीं थी।

 सादर अभिवादन

मार्च का महीना
काफी अर्थों में
अच्छा भी है और
बुरा भी है
खुद खाता है और
खिलाता भी है
गालिया
सोचिए क्यूं ..

आज की रचनाएँ



इन सबके बीच
कुछ निशब्द हथेलियाँ
हाथों को थामे चुपचाप बैठी रहीं

अंधेरा घना था लेकिन
अपनेपन की रोशनी भी कम नहीं थी।




“स्तब्ध हूँ! यह पोशाक विदेशी दुल्हन का होता है जो 
यह सिर्फ़ एक तस्वीर खिंचवाने के लिए शौक़ से पहन ली हैं!”

“तो क्या हो गया! हिर्स में पहन ली!”

“हुआ कुछ नहीं… अभी उनके माथे से सिन्दूर पोछाए हुआ ही कितना दिन है! क्या ज़रा भी मलाल झलकता है आपको? भगवान ना करे किसी पर ऐसा दिन आए लेकिन आ गया तो थोड़ा तो लोक लिहाज़ का ख़्याल कर आज़ाद होने के दिखावे से परहेज़ किया जाना चाहिए कि नहीं?”




कचरे का बड़ा ढेर
कचरे के ढेर को
आदमी ने बड़े ही जतन से
संग्रहित किया

बरसों की मेहनत  
एक-एक कचरा से  
खड़ा किया साम्राज्य  
कचरे का


सबकी अपनी-अपनी परेशानियाँ हैं ,
कुछ की हकीकत कुछ की जुबानियाँ हैं ।

इन उपत्यकाओं पर जो पगडंडियाँ देख रहे हो,
ये असंख्य बटोहियों की निशानियाँ हैं ।





कल फिर
सादर

1 टिप्पणी:

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