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बुधवार, 17 जनवरी 2024

4008...हर दिन नयी भोर उगती है..

 ।।उषा स्वस्ति।।

बाँधो, छबि के नव बन्धन बाँधो!

नव नव आशाकांक्षाओं में

तन-मन-जीवन बाँधो!

छबि के नव--

भाव रूप में, गीत स्वरों में,

गंध कुसुम में, स्मित अधरों में,

जीवन की तमिस्र-वेणी में

निज प्रकाश-कण बाँधो !

सुमित्रानंदन पंत

प्रकृति के विविध छवि, अनुभव को देखते हुए.. नजर डालिए आज की प्रस्तुतिकरण पर...

हर दिन नयी भोर उगती है


दिन भी सोया सोया गुजरा 

दु:स्वप्नों में बीती है रात, 

जाग जरा, ओ ! देख मुसाफ़िर 

प्रमाद लगाये बैठा घात !

✨️




या कोई अहसास दीवाना, हमें कुछ
भी ख़बर नहीं, तैरते रहे हम 
राहे सिफ़र रात भर..

✨️

हम सदा रहेंगे...

 उस दिन....!

जब ना हम होंगे ना तुम

तब भी मिलेंगे 

अपनी कविताओं..

✨️

गुलाब के साथ कांटे भी तो आते हैं "

 मां सुनो- ये कहते हुए मिनी ने ईयर फोन का एक सिरा नीरा के कानों में लगा दिया।एक vioce massege था जिसमें साहिल की मां बोल रहीं थीं" मिनी को बोल दो चाय बनाना जरूर सीख ले पापा को खुश करने के लिए और कुछ खाना बनाना भी... अच्छा मिनी खाना बनाएगी नौकर चाकर नहीं- साहिल पुछा..

✨️

है तब्बसुम में तू मौला.....

क्यूँ भटकते राह-ए-इश्क , झूठे वस्ल की चाह में

है तब्बसुम में तू मौला , तू ही तो हर आह में ....

दे रही जो ज़ख्म दुनिया उनसे क्या है वास्ता..

✨️

 सुतृप्ता, अतृप्ता, स्वमुक्ता

सुतृप्ता

एक नारी

एक रचना..

✨️

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️

3 टिप्‍पणियां:

  1. सुतृप्ता, अतृप्ता, स्वमुक्ता
    सुतृप्ता
    एक नारी
    एक रचना..
    बेहतरीन संकलन
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही सुन्दर भुमिका के साथ बेहतरीन रचनाओं का संकलन, मेरी रचना को भी स्थान देने के लिए दिल से शुक्रिया पम्मी जी 🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. हर दिन भोर उगती है सुन्दर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

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