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बुधवार, 27 दिसंबर 2023

3987.. मौन संवाद..

 ।।उषा स्वस्ति ।।

सहमी सहमी है उषा, ठिठकी- ठिठकी भोर

कोहरे का कम्बल लिये, रवि ताके सब ओर।

हुआ धुंधलका सब तरफ, दिखता नहीं प्रकाश

अभी सबेरा दूर है, सोचे विकल चकोर !

रंजना वर्मा 

शब्दों के सागर में डूबते हुए ..लिजिए आज की पेशकश में शामिल रचनात्मक रूपांतरण ✍️


किसकी है गीता ?

सारथी कृष्ण की ?

धनुर्धर अर्जुन की ?

उठो सपूतों... 


देख दुर्दशा भारत माँ की, 

शोणित धारा बहती है। 

दूर करो फिर तिमिर देश का 

उठो ..

✨️

पहाड़

स्पीति यात्रा के दौरान वहाँ के पहाड़ों ने मुझे अपने मोहपाश में बांधे रखा । उनकी बनावट, टैक्चर बहुत अद्भूत था। वे बहुत लंबे, विशालकाय, अडिग थे। मनाली से काजा का दुर्गम रास्ता पार करते हुए इनसे मौन संवाद होता रहा। 

✨️

जब कोई मुझसे पूछता है.......

'कैसे हो?'

तो होंठों पर ' उधार की हंसी'

लानी ही पड़ती है

और मीठी जुबां से

'ठीक हूँ '

✨️



मध्य रात के साथ शब्द संधान, समुद्र तट पर

उतरती है भीनी भीनी ख़ुश्बू लिए चाँदनी,

काले चट्टानों को फाँदता हुआ जीवन

छूना चाहता है परियों का शुभ्र

परिधान, इक सरसराहट

के साथ खुलते हैं

ख़्वाबों के बंद..

✨️

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️


4 टिप्‍पणियां:

  1. ऊषा स्वस्ति
    शानदार अंक
    सोमवार नववर्षागमन
    एक रचना रविवार को चाहिए
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. पम्मी जी, आपके रचनात्मक रूपांतरण ने एक विचार को कर्म से जोड़ दिया है. केवल चिंतन-मनन नहीं. कर्म भी करना है. धन्यवाद. इस प्रयोग में शामिल करने के लिए. भोर की प्रतीक्षा में विचारमग्न स्पीति के पहाड़ों से संवाद. गीता पर सपूतों की ललकार. सामाजिक अंतर्द्वंद. और ख़्वाबों के खुलते बंद. एक प्रसंग हुआ पूर्ण. आपको बधाई ! सभी रचनाकारों को बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  3. मेरी ब्लॉग पोस्ट को हलचल में शामिल करने हेतु आभार

    जवाब देंहटाएं

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