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बुधवार, 4 अक्टूबर 2023

3900..काॅंच के ख्वाब

 ।। ऊषा स्वस्ति।।

भोर ने जब आँख खोली

लालिमा थी संग

एक किरण फूटी रुपहली

कर गयी श्रृंगार !

भोर के माथे है सूरज

रूप किरणों से सजा है

भोर की उस गोद में

माँ के आँचल सा मजा है

भोर का स्पर्श मन में

कर गया झंकार !

 ममता किरण 

खास देश देतीं पंक्तियों के साथ

चलिए आज की पेशकश में शामिल रचनाओं  संग गुजारें कुछ पल और राजनीति का रोग..

सारी जाति उन लोगों की , मोदी की केवल धार !

 दयानंद पांडेय 

राजनीति में रणनीति के मामले में नीतीश कुमार कई बार नरेंद्र मोदी को भी बहुत पीछे छोड़ देते हैं। कहते थे कभी कबीर कि : जाति न पूछो साधु की पूछ लीजिए ज्ञान। / मोल करो तलवार..

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काँच के ख़्वाब (चोका)

काँच के ख़्वाब 

फेरे जो करवा 

चकनाचूर 

हुए सब-के-सब,

काँच के ख़्वाब 

दूसरा करवट

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काम जु आवै कामरी...' का डाउनलोड लिंक |कहावतों/मुहावरों से सज्जित लघुकथाओं का संकलन

डॉ. उमेश महदोशी जी की फेसबुक वॉल से

कहावतों/मुहावरों से सज्जित लघुकथाओं के संकलन 'काम जु आवै कामरी...' की पीडीएफ..

पृष्ठ संख्या ९७, १०० भी पढ़ें 🙂

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आख़िरश तो तुझे भी ढलना है

ज़ोर शब का न कोई चलना है,

जल्द सूरज को अब निकलना है।


ये ही ठहरी गुलाब की क़िस्मत,

उसको ख़ारों के बीच पलना है।

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इश्क में उसके बार बार हर बार उजड़ा हूँ l

दरख्तों के पतझड़ शायद सावन नहीं पास ll

टूट बिखरा इसकी फ़िज़ाओं अनगिनत बार l

दिल फिर भी ना सुने इन कदमों की आवाज ll

उन्माद के संग विराम लेती हूॅं।

।। इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'…✍️


6 टिप्‍पणियां:

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