---

शनिवार, 23 सितंबर 2023

3889... पतझड़ के फूल



बहुत दुखद घटना हो गई। राष्ट्र कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर जी के सुपुत्र श्री केदार नाथ सिंह जी का निधन,बिहार के बेगुसराय के सिमरिया गाँव में कल हो गया है।

विनम्र श्रद्धांजलि   

एक बार दिल्ली में हो रहे कवि सम्मेलन में पंडित नेहरू पहुँचे। सीढ़ियों से उतरते वक्त वो अचानक लड़खड़ा गए, इसी बीच दिनकर ने उनको सहारा दिया। नेहरू ने उन्हें धन्यवाद कहा। इस पर दिनकर तपाक से बोले-जब जब राजनीति लड़खड़ाएगी, तब-तब साहित्य उसे सहारा देगा। रामधारी सिंह दिनकर की प्रसिद्ध पुस्तक 'संस्कृति के चार अध्याय' की प्रस्तावना तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लिखी है। इस प्रस्तावना में नेहरू ने दिनकर को अपना 'मित्र' बताया है।  

विभा रानी श्रीवास्तव: कोई एक ऐसी बात जो आपको इनकी सदैव याद रहती हो?

[22/09, 12:40 pm] राजेन्द्र पुरोहित : समर शेष है,नहीं पाप का भागी केवल व्याध

जो तटस्थ हैं,समय लिखेगा उनके भी अपराध!

(दिनकर)

[22/09, 12:44 pm] मधुरेश नारायण : जब नाश मनुष्य पर छाता है।

पहले विवेक मर जाता है।

[22/09, 12:57 pm] एकता कुमारी : कर्ण कुंती संवाद

हैं आप कौन? किसलिए यहाँ आयी हैं?

[22/09, 12:44 pm] वर्षा गर्ग: दिनकर जी का नाम सुनते ही उनकी पंक्तियां..

समर शेष है,नहीं पाप का भागी केवल व्याध

जो तटस्थ हैं,समय लिखेगा उनके भी अपराध!

मस्तिष्क में कौंध जाती हैं,हमेशा ही।

[22/09, 1:04 pm] मीरा श्रीवास्तव: महान कवि श्री दिनकर जी की याद हमेशा ही आती है और आती रहेगी  ।

शूरमा नहीं विचलित होते,

छण एक नहीं धीरज खोते,

      विघ्नों को गले लगाते हैं,

      काँटो में राह बनाते हैं 

 और  .....

कृष्ण की चेतावनी  

  याचना नहीं अब रण होगा,

जीवन जय या की मरण होगा। 

'रश्मि रथि' की इन स्मरणीय पंक्तियाँ 

जो मानस पटल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं

[22/09, 1:33 pm] राजकांता राज : दो में से क्या तुम्हें चाहिए कलम या कि तलवार।

[22/09, 8:19 pm] प्रवीण कुमार श्रीवास्तव: मन कटु वाणी से आहत हो,

भीतर तक छलनी हो जाये।

फिर बाद कहे प्रिय वचनो का,

रह जाता कोई अर्थ नहीं।

[22/09, 8:13 pm] अपराजिता रंजना: सौभाग्य न सब दिन सोता है।

देखें आगे क्या होता है।

[22/09, 1:23 pm] प्रियंका श्रीवास्तव 'शुभ्र': 

मेंहदी जब सहती है प्रहार

बनती लालनाओ का श्रृंगार

जब फूल पिरोए जाते हैं

हैं उनको गले लगाते हैं।

[22/09, 11:07 pm] पूनम कतरियार: अब तो  भूलने की बीमारी-सी हो गई है, पहले इनके  हिमालय, कलम या कि तलवार,आदि कई कविताएँ,रश्मिरथी एवं कुरूक्षेत्र की बहुत सारी पंक्तियाँ अक्सर गुनगुनाया करती थी। 

हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...   

धरा पर क्यों बिखर गये, तोड़ के साँठगाँठ

 पत्ते नए सिरे से कहे अन्त का कथा पाठ

रामधारी सिंह 'दिनकर' (23 सितम्‍बर 1908- 24 अप्रैल 1974) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। राष्ट्रवाद अथवा राष्ट्रीयता को इनके काव्य की मूल-भूमि मानते हुए इन्हे 'युग-चारण' व 'काल के चारण' की संज्ञा दी गई है।संस्कृति के चार अध्याय राष्ट्रकवि स्वर्गीय रामधारी सिंह दिनकर की एक बहुचर्चित पुस्तक है जिसे साहित्य अकादमी ने सन् १९५६ में न केवल पहली बार प्रकाशित किया अपितु आगे चलकर उसे पुरस्कृत भी किया। इस पुस्तक में दिनकर जी ने भारत के संस्कृतिक इतिहास को चार भागों में बाँटकर उसे लिखने का प्रयत्न किया है। वे यह भी स्पष्ट करना चाहते हैं कि भारत का आधुनिक साहित्य प्राचीन साहित्य से किन-किन बातों में भिन्न है और इस भिन्नता का कारण क्या है ? उनका विश्वास है कि भारतीय संस्कृति में चार बड़ी क्रान्तियाँ हुई हैं और हमारी संस्कृति का इतिहास उन्हीं चार क्रान्तियों का इतिहास है।

पतझड़ के फूल

सुकून --- अरसे बाद देखकर सुकून मिला

मानो पतझड़ में कोई फूल खिला।

रिश्तों में अब भी वही गर्माहट संजो रखा है

जहाँ से राह बदलकर तूने

पतझड़ के फूल

गुल्ल्क यूं ही आबाद नहीं हुआ पाई पाई को जोड़ा है मैंने, 

अरमानो से जाकर पूछना किस कीमत पर उन्हें तोडा है मैंने,

हौसला यूं ही बुलंद नहीं हुआ अपने वजूद को निचोड़ा है मैंने,   

दुश्मनों से जाकर पूछना किस हैसियत में उन्हें छोड़ा है मैंने।

खिज़ा का खौफ़

अलग है सब से तबीअ'त ही उस की ऐसी है 

वो बे-वफ़ा है मगर उस पे ए'तिबार भी है 

बहारें जाती हैं जाने दो तुम तो रुक जाओ 

बहुत दिनों से तबीअ'त में इंतिशार भी है

अन्तिम यात्रा

मालूम नही क्यों

हैरान था हर कोई मुझे

सोते

हुए

देख कर...

मात्रा गणना

अनुनासिक की स्वयं की कोई मात्रा नहीं होती, तो किसी भी वर्ण में अनुनासिक लगने से मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पड़ता, जैसे :- शब्द अँगना = अ की मात्रा एक ही रहेगी

शब्द आँगन = आ की मात्राएँ दो ही रहेंगी

मात्रा कैसे गिरायें

शाश्वत दीर्घ की मात्रा को

कभी नहीं गिरा सकते

सब से पहले समझना जरूरी है

कि दो मात्रिक शाश्वत दीर्घ क्या है

>>>>>><<<<<<
पुनः भेंट होगी...
>>>>>><<<<<<

4 टिप्‍पणियां:

  1. हमेशा की तरह सदाबहार अंक
    विनम्र श्रद्धासुमन
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. श्री केदार सिंह जी को सादर श्रद्धांजलि व ब्लॉग पर सुन्दर लिंकों के प्रकाशन हेतु धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  3. श्री केदार सिंह जी को भावभीनी श्रद्धांजलि... सुन्दर रचना के प्रकाशन के लिए धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

टिप्पणीकारों से निवेदन

1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।