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बुधवार, 13 सितंबर 2023

3879…. आहिस्ता आहिस्ता,..

 ।। प्रातः वंदन।।

"जो कल थे वो आज नहीं हैं,
जो आज हैं वो कल नहीं होंगे,
होने न होने का क्रम इसी तरह चलता रहेगा,
हम हैं हम रहेंगे, ये भ्रम भी सदा पलता रहेगा।"

- अटल बिहारी वाजपेई
ये भ्रम भी पलता रहेगा...चलिए प्रस्तुति क्रम के सिलसिले को बढ़ाते हुए,आज लाई हूँ चुनिंदा लिंक जिसे आप सभी पढ़े✍️

छोड़ो बक- बक

 मेरी खरी और तेरी खोटी,

इसमें जीवन बीता।

इसी उलझन में फंसे रहे,

कौन हारा, कौन जीता।

छोड़ो बक- बक,

हो जा चुप अब।

❄️


सागर बुला रहा है निकलने तो दे मुझे.तू

 बर्फ से पानी में बदलने तो दे मुझे.

चुपके से आफताब ने बादल से यूँ कहा,
बिखरूंगा इन फ़िज़ाओं में ढलने तो दे मुझे.
❄️
पहली या अन्तिम बार
याद करने के लिए कुछ ख़ास ज़रूरी होता है   
मसलन पहली या अन्तिम बार मिलना   
किसी ख़ास वक़्त में किसी ख़ास जगह पर मिलना   
चाय-कॉफ़ी पर चर्चा करना   
प्यार की बातें करना, संसार की बातें करना
❄️
प्रवाहमान - -

रुख़्सत हो चुका अदृश्य तूफ़ान,
साहिल पे छोड़ कर बर्बादी के
निशान, फिर लौट आएंगे
इक दिन बेघर परिंदे,
मौसम बदलते
ही खुल..
❄️
क्यों जगजीत का प्यार जल्दी जल्दी था और चित्रा का आहिस्ता आहिस्ता?
जगजीत सिंह ने न जाने कितनी भावप्रवण ग़ज़लें गाई होंगी पर अपने कंसर्ट के बीचों बीच चुटकुले सुनकर माहौल को एकदम हल्का फुल्का कर देना उन्हें बखूबी आता था। उनके और लता..
।। इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️

5 टिप्‍पणियां:

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