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बुधवार, 23 अगस्त 2023

3858...सीख, अपने अपने बापू की...

 ।। प्रातः वंदन।।

"साहित्य की पौध बड़ी नाज़ुक और हरी होती है। इसे राजनीति की भैंस द्वारा चर लिए जाने से बचाए रख सकें तभी फ़सल हमें मिल सकती है।"
फणीश्वरनाथ रेणु
बदलते परिवेश,पहर, प्रश्नों के बीच कुछ पल बिना विवाद के बस यहीं पर, नज़र डालें ...✍️

सांप के कान नहीं होते

हम बेमतलब

जिरह की बीन

बजाने पर तुले हैं

सांप दूध नहीं पीते

हम बेमतलब

कटोरी भर

दूध पिलाने पर तुले हैं..

⚜️

सीख, अपने-अपने बापू की

व्यापारी का लड़का सोच मे पड़ गया कि क्या बापू ने झूठ कहा था कि बंदर नकल करते हैं ! उधर बंदर सोच रहा था कि आज बापू की सीख काम आई कि मनुष्यों की नकल कर कभी बेवकूफ मत बनना ! इसके साथ एक बात तो तय हो गई कि यदि आज संसार में जागरूकता बढ़ रही है, शिक्षा का प्रसार हो रहा है तो हमें किसी गलतफहमी..

⚜️

 मेरी कविता बस कुछ शब्द नही

बढ़कर है कहीं उनसे

कुछ अंतस की बातें

कुछ पर्दें के पीछे की कहानियां

घटी और घट रहीं है जो..

⚜️








सूरज 

की है अपनी ही -

मजबूरी, शाम से

पहले उसका

डूबना है

ज़रूरी। जीवन की नाव,

और अंतहीन बहाव,

फिर भी घाट

तक

पहुंचना है ज़रूरी। 

⚜️

हम भी खुश और अगला भी खुश

कई बार ऐसा होता कुछ

हम भी खुश और अगला भी खुश 

मैं भगवन को शीश नमाता 

श्रद्धा से परशाद चढाता 

वो ना खाते , मैं ही खाता ..

⚜️

।। इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️

4 टिप्‍पणियां:

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