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शनिवार, 19 अगस्त 2023

3854... हजारी प्रसाद द्विवेदी


हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...   

हजारी प्रसाद द्विवेदी (जन्म : 19 अगस्त 1907, मृत्यु : 19 मई 1979) एक लेखक, निबंधकार, इतिहासकार आलोचक और उपन्यासकार थे। हिन्दी साहित्य में द्विवेदी की कहानियाँ की एक अलग पहचान है। वे अनेकों भाषाओं के ज्ञानी थे। उनकी हिन्दी के अलावा संस्कृत, पंजाबी, गुजराती, बंगाली, पाली, प्राकृत, अपभ्रंस भाषाओं में प्रखंड समझ थी। भक्तिकालीन साहित्य का उन्हें अच्छा ज्ञान था। सन् १९५७ में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।अशोक के फूल यक्ष और गंधर्व एक ही श्रेणी के थे, परंतु आर्थिक स्थिति दोनों की थोड़ी भिन्न थी। किस प्रकार कंदर्प देवता को अपनी गंधर्व सेना के साथ इंद्र का मुसाहिब बनना पड़ा, वह मनोरंजक कथा है। पर यहाँ वे सब पुरानी बातें क्यों रटी जाँय? प्रकृत यह है कि बहुत पुराने जमाने में आर्य लोगों को अनेक जातियों से निपटना पड़ा था। जो गर्वीली थीं, हार मानने को प्रस्तुत नहीं थीं, परवर्ती साहित्य में उनका स्मरण घृणा के साथ किया गया और जो सहज ही मित्र बन गईं, उनके प्रति अवज्ञा और उपेक्षा का भाव नहीं रहा। अनामदास का पोथा उपन्यास इस युग की बहुत ही लोकप्रिय साहित्य है, शायद ही कोई पढ़ा-लिखा नौजवान इस ज़माने में ऐसा मिले जिसने दो-चार उपन्यास न पढ़े ही, यह बहुत ही मनोर॑जक साहित्य माना जाने लगा है। आजकल जब किसी पुस्तक को बहुत मनोर॑जक साहित्य माना जाने लगा है…'पोथा’ में नारी किसी भी समय सारी दुनियाँ अपने अतीत का फल होती है। हिंदुस्तान तो मुख्य रूप से अपने अतीत का फल है। किसी अन्य देष का वर्तमान जीवन अपने अतीत के सिद्धांतों, स्मृतियों और पुराकथाओं से उतना ओतप्रोत नहीं जितना हिंदुस्तान के लोग अतीत की इन बातों को लेकर हँसते, रोते और झगड़ते हैं। और यह भी कि भारतीय संस्कृति मूलतः नदी संस्कृति है। ऎसी किताबें क्या पढ़ना?  इस उपन्यास में एक और चीज़ जो बेहद आकर्षित करती है वह है इसके स्त्री चरित्र. जहाँ जाबाला से पहली मुलाक़ात रैक्व के लिए समाज और वास्तविक संसार को जानने के पहले वातायन खोलती है, वहीं ऋतुम्भरा का मातृरूप उसे उंगलियाँ पकड़ा कर उस संसार तक ले जाता है और ऋजुका दुःख से उसका पहला साक्षात्कार कराती है. स्त्रियों के ये सभी चरित्र चेतना संपन्न और मानवीय हैं जो एक पत्थर को काट-छांट कर एक ख़ूबसूरत मूर्ति में तबदील कर देते हैं. उपन्यास में आया एक और चरित्र जटिल मुनि का है जो एक अब्राह्मण साधक हैं, श्रम की महत्ता को स्वीकार करने वाले. वह रैक्व को न केवल अनुभव जन्य ज्ञान का महत्व बताते हैं बल्कि प्रेम और स्त्री-पुरुष संबंधों में बराबरी और पारस्परिक सम्मान का पाठ भी पढ़ाते हैं. वह उसे एक धर्म सम्मत विवाह की जगह उद्वाह की सलाह देते हैं. उद्वाह, जिसमें ‘पति पत्नी को और पत्नी पति को ऊपर की और वहन करती है, अर्थात परस्पर की आध्यात्मिक चेतना को परिष्कृत करती है।

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पुनः भेंट होगी...
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3 टिप्‍पणियां:

  1. लाल-लाल पुष्पों के मनोहर स्तबकों में कैसा मोहन भाव है! बहुत सोच-समझकर कंदर्प देवता ने लाखों मनोहर पुष्पों को छोड़कर सिर्फ़ पाँच को ही अपने तूणीर में स्थान देने योग्य समझा था। एक यह अशोक ही है।

    सदा की तरह विलक्षण अंक
    आभार
    सादर वंदे

    जवाब देंहटाएं
  2. सादर नमन आचार्य द्विवेदी जी को।
    बेहतरीन अंक दी हमेशा की तरह।
    प्रणाम दी
    सादर।

    जवाब देंहटाएं

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