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मंगलवार, 8 अगस्त 2023

3843 ..अब तो पांच सौ चालीस से देश चल पाता है

 सादर अभिवादन

ʹगीताʹ में आता हैः
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।
स यत्प्रमाणं कुरूते लोकस्तदनुवर्तते।।

ʹश्रेष्ठ मनुष्य जो-जो आचरण करता है, दूसरे मनुष्य वैसा-वैसा ही करते हैं। 
वह जो कुछ प्रमाण कर देता है, दूसरे मनुष्य उसी के अनुसार आचरण करते हैं।ʹ

अब रचनाएं देखिए ...




बहुत सारी गन्दगी है बहुत बदबूदार है
फेंकना भी होता है हर कोई फेंकना भी चाहता है
‘उलूक’ आसान नहीं होता है शब्द नहीं होते हैं पास में
एक वाक्य तक नहीं बनाया जाता है |



तुझको स्वधर्म पर हो घमंड।
बन जा संस्कृति का मेरुदंड।।
ये उच्च भाव नित रख सँभाल।
हो 'नमन' प्रखर भारत विशाल।।




कभी रहा न मैं उस दिन के बाद से तनहा,
तुम्हारे साथ जो लम्हा बिता लिया मैंने.

ख़ुशी के जाम पिलाते पिलाते छुप-छुप कर,
किसी के दर्द का हिस्सा उठा लिया मैंने.




बचपन में अपने भी जहाज, हवा में उड़ते थे ,
अपनी भी कश्तियां पानी में चलती थीं ...

जब हम बच्चे थे ,दिल के बहुत ही सच्चे थे,
बादशाहों सा जीवन जीते थे जब हम बच्चे थे

आज बस इतना ही
सादर

3 टिप्‍पणियां:

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