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मंगलवार, 1 अगस्त 2023

3836 ..सावन तो सावन है बचपन का हो या बुढ़ापे का

 सादर अभिवादन

कुछ न लिखते हुए एक गीत पढ़िए...

सावन .....
सावन तो सावन है
बचपन का हो या
बुढ़ापे का
क्यों है शिकवा
जमाने से
कागज़ भी है
पानी भी है
कौन रोकता है तुम्हे
कश्ती तैराने से
मन तो कभी बूढ़ा
नहीं होता
कौन रोकता है
बच्चों की ख़ुशी में
खुश हो जाने से
छत से झांक कर
मौज करते बच्चों को देखो
कौन रोकता है
बारिश का लुत्फ़
उठाने से


रचनाएं देखें

उधम सिंह


(26 दिसंबर 1899 - 31 जुलाई 1940)

क्रांति के वीरों में,
थे उधम पंजाबी शेर।
कर्ज था माटी का,
फिर किए डायर को ढेर।।




यदि उसने सोच लिया
उसने सही मार्ग चुना है
वह  सही राह पर चल रही |
जो मन में आया वही किया उसने
किसी के साथ ना चल पाई वह
ना ही अनुसरण कर पाई किसी का
यही जिद रही उसकी उस में ही खुश रही




खेल तू बस खेल
हार भी जीत होगी
जब तुम तन्मयता से खेलोगे
खेल में खेल रहे हैं सब
खेल - खेल में खूब तमाशा
छूमंतर  हुई निराशा
मन में जागती एक नई आशा


आदरणीय पूजा अनिल साधवानी की
रचना पहली बार यहां लाई गई है

जब सोच लो पूरी तरह
दुनिया को इस छोर से उस छोर तक,
तब भीतर के सारे झंझावात
लहराते समुन्दर बन जाएँगे,
आँखों से बरसेंगे बचे खुचे बादल
और अचानक ही साफ़ हो जाएगा,
.....
आज बस इतना ही
सादर


3 टिप्‍पणियां:

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