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मंगलवार, 11 जुलाई 2023

3815 ...भीग न जाएँ बादल से, सावन से बच कर जीते हैं


सादर नमस्कार

कुछ पंक्तिया गुलज़ार साहब की
गले न पड़ जाए सतरंगी
भीग न जाएँ बादल से
सावन से बच कर जीते हैं
बारिश आने से पहले
बारिश से बचने की तैयारी जारी है !!
अब देखिए रचनाएं ......



इक नदी आयी है मेरे आँगन में,
खिलखिलाती है तो
उसकी लहरें जैसे
किलकारियां मारती हैं,
बिलकुल मासूम सी...




फव्वारा कहें जिसे।
शंभु हम मानें इसे।।
लिंग का प्राकट्य है।
विश्व सम्मुख तथ्य है।।

भग्न मूर्ति मिलीं वहाँ।
कमल, स्वस्तिक भी यहाँ।।
चिन्ह जो सब प्राप्त ये।
क्या नहीं पर्याप्त ये।।



जनने के पूर्व ही
दफन की मिट्टी तैयार थी मुट्ठी में
लोरियों की मीठी तान
अंधकार में राह भटक गई



दिया विस्तार
विकसित विचार
बड़ा आभार

ज्ञान का पुंज
करके उपकार
खोले हैं द्वार




एक झलक भोर के
इंतज़ार में,
लंबी रात की पल पल गिनती
बैठी हूँ आज फिर
अपने आगोश मे
दरख्तों को लेकर सोये
झील के खामोश किनारे पर।
......
आज बस
कल पम्मी जी से मिलिएगा
सादर


4 टिप्‍पणियां:

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