---

सोमवार, 3 जुलाई 2023

3807 ...हरि सिंह नलवा ने दो सदी पहले अफगानों पर कसी थी नकेल

 सादर अभिवादन..

आज से सावन का महीना चालू
शिवम् शिवम् शिवाय
आज गुरु पूर्णिमा भी है
अब देखिए रचनाएं




चिंतातुर कवि बैठे हैं
सोचते हुए
ये कहाँ आ गए हम
अब जाएंगे कहाँ
कि आज संवारा नहीं
फिर कल कैसे संवरेगा




जब भी कोई उद्दंड बच्चा वहां अपनी मां को ज्यादा तंग किया करता तो वह उसे 
हरि सिंह नलवा का नाम लेकर डरा दिया करती थीं। वह उन्हें कहती थीं कि बैठ जा 
वरना नलवा आ जाएगा और बच्चा भी तमाम शरारतें छोड़ आराम से बैठ जाता।’



कुसुम कलियाँ
कदाचित
कोमलता की
कुटिलता को
कोसती होंगीं  


मैं बेचारा आफत मारा
हरदम रहा शराफत मारा
अब हूं बड़ी मुसीबत मारा
और फिरता हूं मारा मारा
बचपन में था प्यार का मारा

आज बस इतना ही
कल के लिए
में हूँ न
सादर

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

टिप्पणीकारों से निवेदन

1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।