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शुक्रवार, 9 जून 2023

3783...कुछ लोग ओढ़ कर जो चले मोम का लिबास...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय दिगंबर नासवा जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

शुक्रवारीय अंक में पाँच रचनाओं के लिंक्स के साथ हाज़िर हूँ।

आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

जंगल में भ्रमण

यही तो चाहत थी उसकी भी

जीवन खुशियों में जीने की

उदासी नहीं कभी छू पाई

यदि यही पा लिया जीवन में

बहुत कुछ कर लिया   उसने। 

खिलती मिली जो धूप इरादे बदल गए

मजबूर ग़र नहीं तो ये आदत न हो कहीं,
कीचड़ दिखा तो पाँव भी झट से फ़िसल गए.
कुछ लोग ओढ़ कर जो चले मोम का लिबास,
खिलती मिली जो धूप इरादे बदल गए.

जीवंत लहर--

मेरी हथेली पर जो तुम ने
अपना हाथ रखा है
उस में कितना
विश्वास है
छुपा,
कहना बहुत कठिन है,

कोई नदी तो होगी

कोई नदी तो होगी

जो

बहने से पहले राह देखेगी

नीयत देखेगी

बातों का सूखापन देखेगी

और

देखेगी आदमी में कैद आदमी

के अनंत दुराभाव।

 दाँव का गणित"

आपदा में अवसर देख लेते हो आपलोग। परबचन-परोपदेश देना जरूरी लगा। पीछे से आने वाले को नहीं दिखी कि सामने गाड़ी रुकी है और उसमें से कोई उतरेगा। उतरने वाले को पीछे से आता सवार दिख जाना चाहिए। वर्तुल घूमने वाला गर्दन होता।"

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


6 टिप्‍पणियां:

  1. शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका

    श्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. भीनी हलचल … आभार मेरी ग़ज़ल को जगह देने के लिए - दिगम्बर

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बहुत धन्यवाद रवींद्र जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. उत्कृष्ट लिंकों से सजी लाजवाब प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं

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