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बुधवार, 7 जून 2023

3781...एक बात कहूॅं

 ।। प्रातः वंदन।।

"एक बार और जाल फेंक रे मछेरे

जाने किस मछली में बंधन की चाह हो।
सपनों की ओस गूँथती कुश की नोक है
हर दर्पण में उभरा एक दिवालोक है
रेत के घरौंदों में सीप के बसेरे
इस अँधेर में कैसे नेह का निबाह हो..!!"
- बुद्धि नाथ मिश्रा
कुछ खास ज़ज्बों के संग बढ़ते हैं आज इस ख्याल से कि
एक बात कहूं...इन दिनों बहुत हतप्रभ-सा हूँ| मन नहीं लग रहा है| दिल तो बिलकुल भी अपने कहे में नहीं है| न सुन रहा है कुछ और न ही तो लग रहा है कहीं| शहरों की तंग मिजाजी में सूरदास का ‘ऊधौ मोहि ब्रज बिसरत नाहीं’ बार-बार याद आ रहा है|..
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कुछ सपने हैं जो कभी पा नहीं पाया

सोचा छुपें हैं सभी भविष्य के गर्भ में

कुछ साकार हुए तो उन्हें अपना ना पाया
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प्रेम-सुवासित काव्य.. पूनम माटिया

कल की ही तो बात है वैसे,
कोयल कूक रही हो जैसे,
या कोई चिड़िया चहकी हो,
या फिर कोई कली महकी हो|
हँसी खनकती थी कंगन सी,
काया थी निर्मल कंचन सी|

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१९८४ का साल। आई आई टी रूड़की तब का विख्यात रूड़की विश्वविद्यालय। अखिल भारतीय युवा महोत्सव ‘थोम्सो-८४’ का आयोजन। समूचे देश के प्रतिष्ठित संस्थानों की युवा कला-प्रतिभाओं का विशाल जमघट। संस्कृति.…
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रश्मि विभा त्रिपाठी








तुम ज़िन्दगी का दूसरा नाम हो

मेरा सुख-चैनमेरा आराम हो

 तुम फूलतुम कली

तुम परागतुम खुश्बू की डली

तुम एहसास मखमली


।। इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'✍️

6 टिप्‍पणियां:

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