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गुरुवार, 2 मार्च 2023

3685...गांव को लील गई महानगर की चकाचौंध...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय संदीप कुमार शर्मा जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में पाँच रचनाओं के लिंक्स के साथ हाज़िर हूँ। आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

हाइकू(होली) 

गीत फाग के

गाते हैं चंग  बजा

थिरकते हैं

ग़ज़ल | सोचा ना था | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

तनहाई पे नॉवेल लिक्खा, हिज़्र पे भी दीवान लिखा

जफ़ा* डायरी लिखवाएगी, ये तो हमने सोचा ना था

 ७००. तितली

तितली,

अभी तो वसंत है,

चारों ओर फूल खिले हैं,

पर पतझड़ में भी

कभी चली आया करो,

पौधों को अच्छा लगेगा.

रंगीन पर्दों के पीछे - -

इश्क़ ए मंज़िल का पता रूह को भी मालूम नहीं,
सफ़र में मुसलसल लोग मिले और बिछुड़ते रहे,

लौट आओ

गांव को

लील गई

महानगर की चकाचौंध

और

महानगर भीड़ के वजन से

बैठ गए

उकड़ूँ

*****

फिर मिलेंगे।

रवीन्द्र सिंह यादव


7 टिप्‍पणियां:

  1. यह एक महत्वपूर्ण मंच है... यहां रचना का प्रकाशन मान बढ़ाने वाला है..। आभार रवींद्र जी...।

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  2. आदरणीय सर, अत्यंत सुंदर और भावपूर्ण प्रस्तुति। विविध सन्देश परक और आनन्दकर रचनाओं से भरपूर प्रस्तुति पढ़ कर बहुत आनंद आया। आज बड़े दिनों बाद आपकी प्रस्तुति पढ़ने का सौभाग्य मिला। हार्दिक आभार एवं आप सबों को सादर प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं

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