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सोमवार, 20 फ़रवरी 2023

3675 / स्माइल करो और शुरु हो जाओ ~


नमस्कार  !  हाज़िर हूँ एक छोटे ब्रेक के बाद .....ब्लॉग की कुछ चुनी हुई पोस्ट लेकर .......... यूँ तो शिवरात्रि के कारण शिव स्तुति की ही कई पोस्ट नज़र आयीं  फिर भी कुछ अलग सा चुनने का प्रयास किया है ......फरवरी माह की मेरे द्वारा यह पहली हलचल  .....पाँच लिंकों  के आनंद  पर ...... इस बीच न जाने कितना पानी यमुना में बह गया ........ मतलब  कि पूरा वैलेंटाईन  सप्ताह निकल गया और यहाँ तक की शिव जी की बरात भी निकल गयी ...... चलिए शिव जी की बरात में आप शामिल हुए हों या नहीं लेकिन हमारी ब्लॉगर  कविता  रावत जी शामिल हुई थीं तो चलिए उनके  द्वारा दिखाए विडिओ  से हम भी शामिल हो जाएँ ... 

महाशिवरात्रि पर शिव की अनूठी भव्य बारात

महाशिवरात्रि के दिन शिव मंदिर में पूजा अर्चना के बाद जब दोपहर में शिव-पार्वती बारात में शामिल होने का अवसर मिला तो आत्मीय शांति का अनुभव हुआ। यूट्यूब पर विडियो लोड हुआ तो उसमें ब्लॉग पर शेयर करने का बटन भी सामने आ गया तो क्लिक करने पर ब्लॉग पर आ गया तो सोचा इसके साथ ही दो-चार शब्द लिखती चलूँ।

हो गया न आम के आम गुठलियों के दाम ........ विडिओ के साथ थोड़ी जानकारी भी मिली ......असल बात है आस्था की  ...... यदि मन में  ईश्वर के प्रति आस्था है तो उसका जाप दिए का ही काम करता है ....... मन से  भी अन्धकार दूर होता है और इस लघु कथा को पढ़ जानिये   कि कहाँ  रोशनी करता है  

 दूसरा दीया


यहाँ तक कि गेट की घण्टी बजने पर भी, आनेवाले का नाम पूछने या अपने पहुँचने के लिए "आ रही हूँ"  बोलने की जगह भी ॐ नमः शिवाय ही बोलती हो। तुम उनको पुकारोगी नहीं तो क्या वो तुमको देखेंगे नहीं या ध्यान नहीं रखेंगे!"

सच है  दिया तले अँधेरा भी प्रकाशित हो जाता है ......  लेकिन कुछ लोग आस्था को महज़ पाखंड ही  मान लेते हैं .....

 दरअसल  पहला धर्म तो मानवता ही है  , लेकिन फिर भी किसी की भावनाओं को ठेस नहीं  पहुँचायी जानी चाहिए  ....  पाखण्ड और  आस्था   में काफी अंतर होता है ..... केवल विरोध करना है यह नहीं विचार रखना चाहिए ....मैं तो ले आई हूँ एक ऐसी ही रचना .... निर्णय आप करें ... 


हर धाम में हर पाप का है नहीं चारा


नए जगत में हुआ पुराना
रुद्राक्ष का क़िस्सा 
सबको मिले मेहनत के मुताबिक
अपना-अपना हिस्सा

वैसे ऐसे विचार भी इसलिए बनते हैं क्यों  कि बहुत अजीब औ गरीब अनुभव हो जाते हैं ....  एक जायजा लीजिये इस संस्मरण का ..... 


मैने कुछ नहीं किया। बस भीड़ का हो गया। वैसे भी भीड़ में आप के पास करने के लिए कुछ नहीं रहता। भीड़ में शामिल व्यक्ति सिर्फ भीड़ ही रहता है। आदमी नहीं रह जाता। वही करता है जो भीड़ करती है। वही सोचता है जो भीड़ सोचती है। वैसे ही हाँका जाता है जैसे भीड़ को हाँका जाता है।

यूँ कभी कभी ईश्वर में गहन आस्था रखने वाला जब जीवन के संघर्षों से हारने लगता है तो  ईश्वर से मन की बात कुछ इस तरह भी कर बैठता है ...... 

ताउम्र उलझतीझगड़ती रही

तोहमतें लगाईंकलपती रही कि-

बोलो जरा

तुम्हारी मर्जी बिना जब

हिल सकता नहीं पत्ता भी तो

भला मेरी क्या बिसात .


चलिए ईश्वर से शिकवे शिकायतें बहुत हो गयीं ...... अब चलते हैं व्यवहारिक बातों पर ...... बात तो सोचने वाली है .... कभी कभी हम अनजाने में ही कितना पक्षपात कर जाते हैं कि स्वयं को ही पता नहीं चलता ..... 


स्माइल करो और शुरु हो जाओ ~


क्या जीवन सच में इतना आसान व सरल है कि बस मुसकुराओ और शुरू हो जाओ...! नहीं ऐसा नहीं है, जीवन यदि इतना ही सरल होता, तो आज लोग यूँ अवसाद का शिकार हो आत्महत्या ना कर रहे होते। जीवन के छोटे -छोटे निर्णयों से लेकर जीवन में आने वाले गंभीर चरणों तक मनुष्य को संघर्ष ना करना होता। हर कोई बस मुसकुराता और अपने लक्ष्य के प्रति सजग हो जाता। फिर तो शायद इस संसार में कोई दुखी ही ना होता। नहीं...!

बात तो सही है ....... लेकिन कभी कभी ज़िन्दगी को चटपटा बनाये रखने के लिए क्या क्या जुगत लगायी जाती है ज़रा देखिये ....

वो कौन थी? (कहानी)


राकेश का कहीं पता नहीं था. वापस लौटने को हुई, तभी उसकी नजर राकेश के मोबाइल पर पड़ी. उसमें चैट विंडो ओपन थी. शायद वो किसी से अभी-अभी चैट कर रहा था और बीच में ही उठ गया था.

सोनाली ने पहले तो खुद को रोका, लेकिन मन नहीं माना. उसने अनायास ही मोबाइल उठा लिया. चैट पढ़कर उसकी आँखें फैल गयीं. राकेश किसी “लव” नाम के कांटेक्ट से मैसेज पर बात कर रहा था,

“सुबह अचानक मेरी मैडम की दीदी चाय लेकर आ गयी थीं...इसलिए फोन काटना पड़ा”

चलिए अंत भला तो सब भला ...... कुछ इश्क में पार पा जाते हैं तो कुछ डूब जाते हैं ...... ऐसा 

रचनाकारों को पढ़ते हुए महसूस होता है ......  कुछ पुराने वक़्त को याद कर उसमें खोते हुए ठहर ही 

गए हैं ....... 


शान्त थे बड़े, बड़े निष्काम थे,
पल वो ही, तमाम थे,
बह चली थी, जिस ओर, जिन्दगी,
ठहरी, वक्त की वो ही धार,
बनी आधार थी,
बस, गिनता रहा मैं ....

थे, जो,
कुछ तुम्हारे, कुछ हमारे!

 ऐसे ही एक खूबसूरत ग़ज़ल  लिखी है ........


अपने ही क़दमों की आहट पा रहा हूँ मैं,
कहने को ख़ुद से बहुत दूर जा रहा हूँ मैं,

धुंध में, तसव्वुर ए आबशार है ज़िन्दगी,
तिश्नगी को ख़्वाबों से, बहला रहा हूँ मैं,
  
कोई दूर  जा रहा है तो कोई अगल -बगल हो रहा है ....... अब ये पैसा तो ऐसी ही चीज़ है ...... आइये जानते हैं इनकी दुखती रग  को ..... 




सूरज थका-थका था उसे नींद आ गई,
साग़र की बाज़ुओं में वो झट से पिघल गया.


और  इस पिघलने के साथ ही  आज की हलचल को विराम देती हूँ ............ फिर मिलते हैं ब्लॉग की कुछ चुनी हुई पोस्ट्स के साथ अगले सोमवार को ...... 

नमस्कार 
संगीता स्वरुप 


26 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।
    आपकी अदा ही सबसे अलग और अनोखी है।
    हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।।।।

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  2. भावभीनी हलचल … आभार मेरी ग़ज़ल को शामिल किया आपने .

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  3. इतनी पुरानी पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार। आपकी मेहनत की जितनी तारीफ की जाय, कम है।

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  4. कविता रावत जी की पोस्ट में कमेंट नहीं कर पाया।

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    1. जी , मैं भी नहीं कर पाई वहाँ टिप्पणी । शायद ऑप्शन बन्द कर रखा है ।

      हटाएं
  5. बहुत बढ़िया अंक

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  6. बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट सम्मिलित करने हेतु आपका बहुत-बहुत आभार!
    हमारे ब्लॉगर साथी यदि समय निकालकर हमारे यूट्यूब चैनल पर जाकर वीडियो देखकर कमेंट करेंगे तो ख़ुशी होगी, इससे हमारा चैनल जल्दी monetize हो जाएगा। इसलिए सभी ब्लॉगर साथियोँ से निवेदन है कि चैनल की वीडियो देखकर लाइक, शेयर और सब्सक्राइब कर हमें अपना प्रोत्साहन और सहयोग करने की कृपा करें।

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    उत्तर
    1. सराहना हेतु आभार । ब्लॉग पर भी टिप्पणी का ऑप्शन रखिये ।

      हटाएं
  7. कुछ ब्लोग्स पढ़कर आ रही हूँ इन लिनक्स के माध्यम से. अच्छे लगे.

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  8. आज बहुत दिनों बाद ब्लॉग भ्रमण पर निकली हूं और शुरुआत आपकी प्रस्तुति से। हमेशा की तरह एक से बढ़कर एक रचनाओं का संग्रह।आपके इस श्रमसाध्य कार्य को नमन दी 🙏 सभी रचनाकारों को भी बहुत बहुत शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  9. प्रिय दीदी,आपकी इस भाव-पूर्ण और सार्थक प्रस्तुति के माध्यम से ब्लॉग जगत की कई सुन्दर रचनाओ को पढने का अवसर मिला।लेख,कहानी छन्दमुक्त रचना के साथ मधुर गजलो से पढने का सुकून मिला।सभी रचनाएँ अपनी जगह अनमोल हैं।भोलेबाबा का दिन है और उनको समर्पित सभी रचनाएँ भी अच्छी लगी।सभी रचनाकारों को सादर नमनऔर आपको आभार इतनी सुन्दर रचनाओं को पटल तक लाने के लिए।उषा जी की रचना सिहरा गयी तो दिगम्बर जी का ये शेर आत्मा के चक्कर लगाता घूमता रहा।
    पत्थर में आ गई थी फ़सादी की आत्मा,
    साबुत सरों को देख के फिर से मचल गया/////
    👌👌👌👌👌🙏🙏

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    उत्तर
    1. प्रिय रेणु ,
      स्पैम से निकाल कर लायी हूँ तुम्हारी टिप्पणी। मुझे खुशी होती है जब मेरे दिए लिंक्स पाठक पढता है । तुमको रचनाएँ पसंद आयीं , इसके लिए हार्दिक आभार ।

      हटाएं
  10. सभी रचनायें अनमोल है बहुत ही बढ़िया संकलन 🙏🏼

    जवाब देंहटाएं
  11. उत्कृष्ट लिंकों से सजी लाजवाब प्रस्तुति ।
    हमेशा की तरह अद्भुत ।
    🙏🙏🙏🙏

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  12. बहुत ही बढियां संकलन
    खूबसूरत प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

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